फसल
हल की तरहकुदाल की तरह
या खुरपी की तरह
पकड़ भी लूँ कलम तो
फिर भी फसल काटने
मिलेगी नहीं हम को ।
हम तो ज़मीन ही तैयार कर पायेंगे
क्रांतिबीज बोने कुछ बिरले ही आयेंगे
हरा-भरा वही करेंगें मेरे श्रम को
सिलसिला मिलेगा आगे मेरे क्रम को ।
कल जो भी फसल उगेगी, लहलहाएगी
मेरे ना रहने पर भी
हवा से इठलाएगी
तब मेरी आत्मा सुनहरी धूप बन बरसेगी
जिन्होने बीज बोए थे
उन्हीं के चरण परसेगी
काटेंगे उसे जो फिर वो ही उसे बोएंगे
हम तो कहीं धरती के नीचे दबे सोयेंगे ।
Fasal
hal ki tarahkudal ki tarah
ya khurpi ki tarah
pakad bhi lun kalam to
phir bhi fasal katne
milegi nahin ham ko
ham to zameen hi taiyar kar payenge
krantibeej bone kuchh birle hi aayenge
hara-bhara wahi karenge mere shram ko
silsila milega aage mere kram ko
kal jo bhi fasal ugegi, lahlahaegi
mere na rahne par bhi
hawa se ithlaegi
tab meri aatma sunhari dhup ban barsegi
jinhone beej boe the
unhin ke charan parsegi
katenge use jo phir wo hi use boenge
ham to kahin dharti ke neeche dabe soyenge
Sarveshwar Dayal Saxena