बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका - शकेब जलाली

बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका

बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका
हम जिस पे मर मिटे वो हमारा न हो सका

रह तो गई फ़रेब-ए-मसीहा की आबरू
हर चंद ग़म के मारों का चारा न हो सका

ख़ुश हूँ कि बात शोरिश-ए-तूफ़ाँ की रह गई
अच्छा हुआ नसीब किनारा न हो सका

बे-चारगी पे चारागरी की हैं तोहमतें
अच्छा किसी से इश्क़ का मारा न हो सका

कुछ इश्क़ ऐसी बख़्श गया बे-नियाज़ियाँ
दिल को किसी का लुत्फ़ गवारा न हो सका

फ़र्त-ए-ख़ुशी में आँख से आँसू निकल पड़े
जब उन का इल्तिफ़ात गवारा न हो सका

उल्टी तो थी नक़ाब किसी ने मगर 'शकेब'
दा'वों के बावजूद नज़ारा न हो सका - शकेब जलाली
मायने
फ़रेब-ए-मसीहा = मसीहा का धोखा, शोरिश-ए-तूफ़ाँ = पत्थर का तूफ़ान, बेचारगी = असहाय, बे-नियाज़ियाँ = लापरवाही, फ़र्त-ए-ख़ुशी = खुशी की अधिकता, इल्तिफ़ात = दया/प्रणय-कटाक्ष


bad-kismati ko ye bhi gawara na ho saka

bad-kismati ko ye bhi gawara na ho saka
hum jis pe mar mite wo hamara na ho saka

rah to gai fareb-e-masiha ki aabru
har chand gham ke maron ka chaara na ho saka

khush hun ki baat shorish-e-tufan ki rah gai
achchha hua naseeb kinara na ho saka

be-chaargi pe chaaragari ki hain tohmaten
achchha kisi se ishq ka mara na ho saka

kuchh ishq aisi bakhsh gaya be-niyaziyan
dil ko kisi ka lutf gawara na ho saka

fart-e-khushi mein aankh se aansu nikal pade
jab un ka iltifat gawara na ho saka

ulti to thi naqab kisi ne magar 'shakeb'
daawon ke bawajood nazara na ho saka - Shakeb Jalali

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