ख़ावर रिज़वी जीवन परिचय
ख़ावर रिज़वी साहब का जन्म 1 जून 1938 को हुआ | इनके जन्म के साल में कुछ गफलत है कुछ लोग इसे 1936 बताते है | आपका असल नाम सय्यद सिब्ते हसन रिज़वी था |
आपको शायरी की कला अपनी माँ आबिदा बेगम से मिली जो की स्वयं एक बहुत अच्छी शायरा थी पर उनकी अधिकाशत: शायरी संरक्षित नहीं की जा सकी | आपके मामूजान डॉ. अब्दुल हसन भी एक मशहूर शायर थे और आपके चाची बानो सैदपुरी भी | कुल कहे तो आप एक शायर परिवार से थे आपके पिताजी सय्यद नज्म उल हसन रिज़वी पाकिस्तान सेना में कार्यरत थे |
आपने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी विद्यालय से पूरी की | और फिर अत्तोक ( Attock) कालेज से अपनी स्नातक प्राप्त की इसके पश्चात् आपने पंजाब विश्विद्यालय से साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की |
आपने अपने जीविकोपार्जन के लिए बैंक को चुना | बाद में आपने बैक की नौकरी छोड़कर पाकिस्तान के सोशल सिक्यूरिटी विभाग से जुड़े | और आपको जब हृदयाघात हुआ तब भी आप इसी विभाग में अध्यक्ष पद पर थे |
हृदयाघात के कारण 15 नवम्बर 1981 को आपकी मृत्यु हुई |
मशहूर शायर अहमद नदीम कासमी ने आपके लिए लाहौर से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका "जूनून" में लिखा था हसन रिज़वी साहब ने भी लाहौर से प्रकाशित होने वली पत्रिका "जंग" में एक लेख प्रकाशित किया था | अज़हर जावेद जी ने अपनी पत्रिका "तख्लीक़" में आपके बारे में लिखा था |
आपको शायरी की कला अपनी माँ आबिदा बेगम से मिली जो की स्वयं एक बहुत अच्छी शायरा थी पर उनकी अधिकाशत: शायरी संरक्षित नहीं की जा सकी | आपके मामूजान डॉ. अब्दुल हसन भी एक मशहूर शायर थे और आपके चाची बानो सैदपुरी भी | कुल कहे तो आप एक शायर परिवार से थे आपके पिताजी सय्यद नज्म उल हसन रिज़वी पाकिस्तान सेना में कार्यरत थे |
आपने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी विद्यालय से पूरी की | और फिर अत्तोक ( Attock) कालेज से अपनी स्नातक प्राप्त की इसके पश्चात् आपने पंजाब विश्विद्यालय से साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की |
आपने अपने जीविकोपार्जन के लिए बैंक को चुना | बाद में आपने बैक की नौकरी छोड़कर पाकिस्तान के सोशल सिक्यूरिटी विभाग से जुड़े | और आपको जब हृदयाघात हुआ तब भी आप इसी विभाग में अध्यक्ष पद पर थे |
हृदयाघात के कारण 15 नवम्बर 1981 को आपकी मृत्यु हुई |
मशहूर शायर अहमद नदीम कासमी ने आपके लिए लाहौर से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका "जूनून" में लिखा था हसन रिज़वी साहब ने भी लाहौर से प्रकाशित होने वली पत्रिका "जंग" में एक लेख प्रकाशित किया था | अज़हर जावेद जी ने अपनी पत्रिका "तख्लीक़" में आपके बारे में लिखा था |
गिरते शीश-महल देखोगे
गिरते शीश-महल देखोगेआज नहीं तो कल देखोगे
इस दुनिया में नया तमाशा
हर साअत हर पल देखोगे
किस किस तुर्बत पर रोओगे
किस किस का मक़्तल देखोगे
देर है पहली बूँद की सारी
फिर हर-सू जल-थल देखोगे
हर हर ज़ख़्म-ए-शजर से 'ख़ावर'
फूटती इक कोंपल देखोगे - ख़ावर रिज़वी
मायने
तुर्बत= कब्र, मक़्तल=क़त्ल का स्थान
Girte sheesh mahal dekhoge
Girte sheesh mahal dekhogeaaj nahin to kal dekhoge
is duniya me naya tamasha
har saaat har pal dekhoge
kis kis turbat par rooge
kis kis ka maqtal dekhoge
der hai pahli bund ki sari
fir har-su jal-thal dekhoge
har har zakhm-e-shazar se "Khawar"
futati ik kopal dekhoge - Khawar Rizvi