हिंदुस्तान छोड़ दो - इस्मत चुग़ताई

हिंदुस्तान छोड़ दो - इस्मत चुग़ताई

SHARE:

हिंदुस्तान छोड़ दो साहब मर गया जयंतराम ने बाजार से लाए हुए सौदे के साथ यह खबर लाकर दी। 'साहब- कौन साहब? 'वह कांटरिया साहब था न? 'वह काना साहब- जैक्सन।

हिंदुस्तान छोड़ दो

साहब मर गया जयंतराम ने बाजार से लाए हुए सौदे के साथ यह खबर लाकर दी।

'साहब- कौन साहब?

'वह कांटरिया साहब था न?

'वह काना साहब- जैक्सन। च-च-बेचारा।

मैंने खिडकी में से झांक कर देखा। काई लगी पुरानी जगह- जगह से खोडी हैंसी की तरह गिरती हुई दीवार के इस पार उधडे हुए सीमेंट के चबूतरे पर सक्खू भाई पैर पसारे मराठी भाषा में बौन कर रही थी। उसके पास पीटू उकडू बैठा हिचकियों से रो रहा था। पीटू यानी पीटर, काले-गोरे मेल का नायाब नमूना था। उसकी आंखें जैक्सन साहब की तरह नीली और बाल भूरे थे। रंग गेहूंआ था, जो धूप में जलकर बिल्कुल तांबे जैसा हो गया था। इसी खिडकी में से मैं बरसों से इस अजीबोगरीब खान्दान को देखती आई। यहीं बैठकर मेरी जैक्सन से पहली मरतबा बातचीत शुरू हुई थी।

'सन बयालीस का 'हिन्दुस्तान छोड दो का हंगामा जोरों पर था। ग्रांट रोड से दादर तक का सफर मुल्क की बेचैनी का एक मुख्तसर मगर जान्दार नमूना साबित हुआ था। मैगन रोड के नाके पर एक बडा भारी-सा अलाव जल रहा था। जिसमें राह चलतों की टाइयां, हैट और कभी मूड आ जाता तो पतलूनें उतार कर जलाई जा रही थीं। सीन कुछ बचकाना सही, मगर दिलचस्प था। लच्छेदार टाइयां, नई तर्ज के हैट, इस्त्री की हुई पतलूनें, बडी बेदर्दी से आग में झोंकी जा रही थीं। फटे हुए चीथडे पहने आतिशबाज नए-नए कपडों को निहायत बेतकल्लुफी से आग में झोंक रहे थे। एक क्षण को भी तो किसी के दिल में यह खयाल नहीं आ रहा था कि नई गैरीडीन की पतलून को आग के मुंह में झोंकने के बजाय अपनी नंगी स्याह टांगों में ही चढा ले, इतने में मिलेट्री की ट्रक आ गई थी, जिसमें से लाल भभूका थूथनियों वाले गोरे, हाथों में मशीनगन संभाले धमाधम कूदने लगे। मजमा एकदम फुर से न जाने कहां उड गया था। मैंने यह तमाशा म्युनिस्पिल दफ्तर के सुरक्षित हाते से देखा था और मशीनगनें देखकर मैं जल्दी से अपने दफ्तर में घुस गई थी।

रेल के डिब्बों में भी अफरा-तफरी मची हुई थी। बम्बई सेंट्रल से जब रेल चली थी तो डिब्बे की आठ सीटों में से सिर्फ तीन सलामत थीं। परेल आने तक वो तीनों भी उखेड कर खिडकियों से बाहर फेंक दी गईं, और मैं रास्ते भर खडे-खडे दादर तक आई। मुझे उन छोकरों पर कतई कोई गुस्सा नहीं आ रहा था। ऐसा मालूम हो रहा था, ये सारी रेलें, ये टाइयां पतलूनें, हमारी नहीं दुश्मन की हैं। इनके साथ हम दुश्मन को भी भून रहे हैं, उठाकर फेंक रहे हैं। मेरे घर के करीब ही सडक के बीचों-बीच ट्रेफिक रोकने के लिए एक पेड का लम्बा सा लट्ठा सडक पर बेडा डालकर उस पर कूडे करकट की अच्छी खासी दीवार खडी थी। मैं मुश्किलों से उसे फांद कर अपने फ्लैट तक पहुंची ही थी कि मिलेट्री की ट्रक रुक गई। उसमें से जो पहला गोरा मशीनगन लिए धम से कूदा था, जैक्सन साहब ही था। ट्राक की आमद की खबर सुनते ही सडक पर रोक बांधने वाला दस्ता इधर-उधर बिल्डिंगों में सटक गया था। मेरा फ्लैट क्योंकि सबसे निचली मंजिल पर था, लिहाजा बहुत से छोकरे एकदम रैला करके घुस आए। कुछ किचेन में घुस गए, कुछ बाथरूम और टायलेट में दुबक गए। चूंकि मेरा दरवाजा खुला हुआ था इसलिए जैक्सन दो शस्त्रधारी गोरों के साथ मुझसे जवाब-तलब करने आगे आया।

'तुम्हारे घर में बदमाश छिपे हैं, उन्हें हमारे हवाले कर दो।

'मेरे घर में तो कोई नहीं, सिर्फ मेरे नौकर हैं। मैंने बडी लापरवाही से कहा।

'कौन हैं तुम्हारे नौकर?

'ये तीनों मैंने तीन छोकरों की तरफ इशारा किया जो बर्तन खडबडर कर रहे थे।

'यह बाथरूम में कौन है?

'मेरी सास नहा रही है कहते हुए, खयाल आया मेरी सास इस वक्त न जाने कहां होंगी।

'और टायलेट में? उसके चेहरे पर शरारत की झपकी आई।

'मेरी मां होगी या शायद बहन हो मुझे क्या मालूम मैं तो अभी-अभी बाहर से आई ं।

'फिर तुम्हें कैसे मालूम हुआ की बाथरूम में तुम्हारी सास है।

'मेरे घर में दाखिल होते ही उन्होंने आवाज देकर मुझसे तौलिया मांगा था।

'ं- अपनी सास से कह दो, सडक रोकना जुर्म है। उसने दबी आवाज में कहा और अपने साथियों को, जिन्हें वह बाहर खडा कर आया था, वापस ट्रक में जाने को कहा 'ं-ं-ं वह गर्दन हिलाता हौले-हौले मुस्कराता हुआ चला गया। उसकी आंखों में अर्थपूर्ण जुगनू चमक रहे थे।

जैक्सन का बंगला मेरे फ्लैट की चहारदीवारी से सटी जमीन पर था। पश्चिमी छोर पर समुद्र था। उसकी मेम साहब मां दोनों बच्चों के इन दिनों हिन्दुस्तान आई हुई थीं। बडी लडकी जवान थी और छोटी बारह-तेरह बरस की। मेम साहब सिर्फ छुट्टियों में थोडे दिनों के लिए हिन्दुस्तान आ जाती थीं। उसके आते ही बंगले का हुलिया ही बदल जाता था। नौकर चाक-चौबन्द हो जाते। अन्दर-बाहर पुताई होती। बाग में नए गमले मुहय्या किए जाते। मेम साहब के जाते ही जिन्हें पास पडोस के लोग चुराना शुरू कर देते। कुछ को माली बेच डालता। दोबारा जब मेम साहब के आने का गलगला मचता तो साहब फिर विक्ट्रोया गाडर्ेन से गमले उठवा लाता।

जितने दिन मेम साहब रहतीं, नौकर बावर्दी नजर आते। साहब भी यूनीफार्म डाले रहता या निहायत उम्दा ड्रेसिंग गाऊन पहने- साफ-सुथरे कुत्तों के साथ लान और क्यारियों का बिल्कुल इस तरह मुआयना करता फिरता गोया वह सौ फीसद यानी सचमुच साहब लोगों में से है।

मगर मेम साहब के जाते ही वह इत्मीनान की सांस लेकर दफ्तर जाता। डयूटी के बाद नेकर और बनियान पहने चबूतरे पर कुर्सी डाले बीयर पिया करता। उसका ड्रेसिंग गाऊन शायद उसका बैरा चुरा ले जाता। कुत्ते तो मेम साहब के साथ ही चले जाते। दो-चार देसी कुत्ते बंगले को यतीम समझ कर उसके लान में डेरा डाल देते।

मेम साहब जितने दिन रहती डिनर पार्टियों का जोर रहता और वह सुबह ही सुबह पंच सुरों में अपनी आया को आवाज देतीं।

'आया ऊ ..... ऊ....।

'जी मेम साहब आया उसकी आवाज पर तडप कर दौडती। मगर जब मेमसाहब चली जातीं तो लोगों का कहना था कि आया बेगम बन बैठी थीं। वह उसकी गैरहाजिरी में एवजी भुगताया करती थी।

फ्लोमीना और पीटू उर्फ पीटर इसी अस्थाई समर्पण के स्थाई प्रमाण थे।

'कुछ हिन्दुस्तान छोड दो। का हंगामा और कुछ मेम साहब उकता गई थीं, इस गंदे पिचपिचाते मुल्क और उसके वासियों से इसलिए जल्दी ही वह वतन सिधार गई। उन्हीं दिनों मेरी मुलाकात जैक्सन से इसी खिडकी के जरिए हुई।

'तुम्हारा सास नहा चुका? उसने बम्बई की जबान में कमीनपने से मुस्कुराते हुए पूछा।

'हां साहब नहा चुका था। खून का स्नान किया उसने मैंने तीखेपन से जवाब दिया, चौदह-चौदह बरस के चंद बच्चे कुछ ही दिन पहले, हरि निवास पर जब गोली चली थी, उसमें मारे गए थे। मुझे यकीन था कि उनमें से कुछ वहीं बच्चे होंगे, जो उस दिन मिलेट्री की ट्रक आने पर मेरे घर में छिप गए थे। मुझे साहब से घिन आने लगी थी। ब्रिटिश साम्राज्य का जीता जागता हथियार मेरे सामने खडा उन बेगुनाहों के खून का मजाक उडा रहा था, जो उसके हाथ से मारे गए थे। मेरा जी चाहा उसका मुंह नोच लूं! उसकी कौन-सी आंख शीशे की थी, यह अंदाज लगा पाना मेरे लिए मुश्किल था। क्योंकि वह शीशे वाली आंख विलायती थी, मक्कारी का आला नमूना थी। उसमें जैक्सन की सारी सफेद कौम की चालबाजी भरी हुई थी। उच्चता का दंभ दोनों ही आंखों में रचा हुआ था। मैंने धड से खिडकी के पट बन्द कर दिए।

मुझे सक्खू बाई पर बहुत गुस्सा आता था। सूअर की बच्ची सफेद कौम के जलील कुत्ते का तर निवाला बनी हुई थी। क्या खुद उसके मुल्क में कोढियों और हरामजादों की कमी थी, जो वह मुल्क की गैरत के नीलाम पर तुल गई थी। जैक्सन रोज शराब पीकर उसकी ठुकाई करता। मुल्क में बडे-बडे मोर्चे फतह किए जा रहे थे। सफेद हाकिम बस कुछ दिनों के मेहमान थे।

'बस अब चल चलाओ है इनकी हुकूमत का कुछ लोग कहते। 'अजी ये शेख चिल्ली के ख्वाब हैं। इन्हें निकालना आसान नहीं कुछ दूसरे लोग राय देते। इधर मैं मुल्क के नेताओं की लम्बी-चौडी तकरीरें सुन कर सोचती, कोई जैक्सन काने साहब का जिक्र ही नहीं करता। वह मजे से सक्खू बाई को झोंटे पकड कर पीटता है। फ्लोमीना और पीट्टू को मारता है। आखिर जै हिन्द का नारा लगाने वाले उसका कुछ फैसला क्यों नहीं करते? मगर मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। पिछवाडे शराब बनती थी। मुझे सब कुछ मालूम था, मगर मैं क्या कर सकती थीं। सुना था अगर गुंडों की शिकायत कर दो तो ये जान को लागू हो जाते हैं। वैसे मुझे तो यह भी नहीं मालूम था कि किससे रिपोर्ट करूं। सारी बिल्डिंग के नल दिन-रात टपकते थे, नालियां सड रही थीं। मगर मुझे बिल्कुल नहीं मालूम था कि कहां किससे रिपोर्ट की जाती है। आसपास रहने वालों में भी किसी को नहीं मालूम था कि अगर कोई बदजात औरत ऊपर से किसी के सर पर पूडे का टिन उलट दे तो किससे शिकायत करें। ऐसे मौकों पर आम तौर पर जिसके सर पर कूडा गिरता वह मुंह ऊंचा करके खिडकियों को गालियां बकता, कपडें झाडता अपनी राह लेता।

मैंने मौका पाकर एक दिन सक्खू बाई को पकडा 'क्यों कम्बख्त यह पाजी तुम्हें रोज पीटता है, तुझे शर्म भी नहीं आती?

'रोज कब्बी मारता बाई? वह बहस करने लगी।

'खैर वह महीने में चार-पांच बार तो मारता है न

'हां मारता है बाई, सो हम भी साले को मारता है वह हंसी।

'चल झूठी

'अरे पीट्टू की सौगंध, हम थोडा मार दिया साले को परसों

'मगर तुझे शर्म नहीं आती सफेद चमडी वाले की जूतियां सहती है?

'मैंने एक सच्चे वतन परस्त की तरह जोश में आकर उसे लेक्चर दे डाले।

'इन लुटेरों ने हमारे मुल्क तो कितना लूटा है वगैरा-वगैरा।

'अरे बाई क्या बात करता तुम। साहब साला कोई नहीं लूटा ये जो मवाली लोग हैं न वो बेचारा को दिन-रात लूटता। मेम साब गया, पीछे सब कटलरी-फटलरी बैरा लोग पार कर दिया। अक्खा पटूलन-कोट, हैत, इतना फस्त क्लास जूता, सब खतम। देखो चल के बंगले में कुछ भी नहीं छोडा। तुम कहता चोर है साहब। हम बोलता हम नई होदे तो साल उसका बेटी काट के ले जादे ऐ लोग

'मगर तुम्हें उसका क्यों इतना दर्द है?

'काइको नई होवे दर्द, वो हमारा मरद है न बाई सक्खू बाई मुस्कराई!

'और मेम साहब?

'मेम साब पक्की छिनाल हो- लन्दन में उसका बौत यार है.... यहां सक्खू बाई ने मोटी सी गाली देकर कहा, '...वहीं मरी रहती है। आती बी नई। पन आती तो दन साहब से खिट-खिट, नौकर लोग से गिट-गिट। मैंने उसे समझाने की कोशिश की कि अब अंग्रेज हिन्दुस्तान से जा रहे हैं। साहब भी चला जाएगा। मगर वह कतई नहीं समझी। बस यही कहती रही कि 'साहब चला जाएगा बाई मगर उसे विलायत बिलकुल पसंद नहीं

कुछ सालों के लिए मुझे पूना रहना पडा। इस अर्सा में दुनिया बदल गई। फिर सचमुच अंग्रेज चले गए। मुल्क का बंटवारा हुआ। सफेद हाकिम पिटी हुई चाल चल गया और मुल्क खून की नहरों में नहा गया।

जब बम्बई वापस आयी तो बंगले का हुलिया बदला हुआ था। साहब न जाने कहां चला गया था। बंगले में एक रिफ्यूजी खान्दान आ बसा था। बाहर नौकरों के क्वार्टरों में से एक में सक्खू बाई रहने लगी थी। फ्लोमीना खासी लम्बी हो गई थी। पीट्टू और वह माहम के एक यतीम खाने (अनाथालय) में पढने जाते थे।

जैसे ही सक्खू बाई को मेरे आने की खबर लगी वह फौरन ही हाथ में मूंगने की दो चार फलियां लिए आ धमकी!

'कैसा है बाई? उसने रसमन मेरे घुटने दबा कर पूछा।

'तुम कैसा है, साहब कहां है तुम्हारा? चला गया न लन्दन?

'नई बाई... सक्खू बाई का मुंह सूख गया, 'हम बोला भी जाने को पर नहीं गया। उसका नौकरी भी खलास हो गया था। आर्डर भी आया, पर नहीं गया।

'फिर कहां है?

'अस्पताल में

'क्यों क्या हो गया?

'डॉक्टर लोग बोलता कि दारू बोत पिया इस कारन मस्तक फिर गया। उधर पागल साहब लोग का हस्पताल है। उच्चा-एकदम फर्स्ट क्लास, उधर उसको डाला

'मगर वह तो वापस जाने वाला था?

'कितना सब लोग बोला, हम लोग बोला बाबा चले जाओ

सक्खू बाई रो पडी।

'पन नहीं, हमको बोला सक्खू डार्लिंग तेरे को छोड कर नहीं जाएंगे।

न जाने सक्खू बाई को रोते देखकर मुझको क्या हो गया, मैं भूल गई कि साहब एक लुटेरी साम्राजी कौम का फर्द है, जिसने फौज में भर्ती होकर मेरे मुल्क की गुलामी की जंजीरों को ज्यादा जकड बना दिया था। जिसने मेरे वतन के बच्चों पर गोलियां चलाई थीं, निहत्थे लोगों पर मशीनगनों से आग बरसायी थी। वह ब्रिटिश साम्राज्य के उन घिनौने कलपुर्जों में था जिसने मेरे देस के जांबाजों का खून सडकों पर बहाया था, सिर्फ इस कुसूर में कि वह अपने हक मांगते थे, इज्जत से जीना चाहते थे। मगर मुझे उस वक्त कुछ याद न रहा, सिवाए इसके कि सक्खू बाई का मर्द पागलखाने में भर्ती था। मुझे अपने इस तरह भावुक होने पर बहुत दुख था। क्योंकि एक कौमपरस्त को जाबिर कौम के एक फर्द से कतई किसी तरह की हमदर्दी या लगाव नहीं महसूस करना चाहिए।

मैं ही नहीं सब ही भूल चुके थे। मोहल्ले के सारे लौंडे नीली आंखों वाली फीलोमीना पर बगैर यह सोचे-समझे फिदा थे कि वह कीडा जिससे उसकी हस्ती अस्तित्व में आई सफेद था या काला। जब वह स्कूल से लौटती तो कितनी ही ठण्डी सांसें उसके इंतजार में होतीं। कितनी ही निगाहें उसके पैरों तले बिछी थीं... किसी लौण्डे को उसके इश्क करते, सिर धुनते वक्त किंचित याद न रहता कि यह उसी सफेद दरिन्दे की लडकी है जिसने हरिनिवास के नाके पर चौदह बरस के बच्चे को खून में डिबो कर मारा था। जिसने माहम चर्च के सामने निहत्थी औरतों पर गोलियां चलाई थीं। क्योंकि वो नारे लगा रही थीं। जिसने चौपाटी की रेत में जवानों का खून निचोडा था और सिक्रेट्रियेट के सामने सूखे-मारे नंगे भूखे लडकों के जुलूस को मशीनगनों से दरहम-बरहम किया था। उन सारे मंजरों को सब भूल चुके थे। बस इतना याद था कि कुंदनी गालों और नीली आंखों वाली छोकरी की कमर में गजब की लचक है। मोटे-मोटे गदराए हुए होंठों के कम्पन में मोती खलते हैं।

एक दिन सक्खू बाई झोली में प्रसाद लिए भागी-भागी आई।

'हमारा साहब आ गया

उसकी आवाज लरज रही थी, आंखों में मोती चमक रहे थे। कितना प्यार था, इस लफ्ज हमारा में। जिन्दगी में एक बार किसी को पूरी जान का दम निचोड कर अपना कहने का मौका मिल जाए तो फिर जन्म लेने का मकसद पूरा हो जाता है।

'अच्छा हो गया?

'अरे बाई पागल कब्बी था वह? ऐसे इच साहब लोग पकड कर ले गया था, भाग आया।

वह राज बताने जैसे लहजे में बोली।

मैं डर गई, एक तो हारा हुआ अंग्रेज ऊपर से पागलखाने से भागा हुआ। किसको रिपोर्ट करूं। बम्बई की पुलिस के लफडे में कौन पडता फिरे। हुआ करे पागल मेरी बला से। कौन मुझे उससे मेल -जोल बढाना है।

लेकिन मेरा खयाल गलत निकला। मुझे मेल-जोल बढाना पडा मेरे दिल में खुद-बुद हो रही थी कि किसी तरह पूछूं, 'जैक्सन इंगलिस्तान अपने बीवी बच्चों के पास क्यों नहीं जाता। भला ऐसा भी कोई इंसान होगा जो जन्नत को छोडकर यों एक खोली में पडा रहे। और एक दिन मुझे मौका मिल ही गया। कुछ दिन तक तो वह कोठरी से बाहर ही न निकला। फिर आहिस्ता-आहिस्ता निकलकर चौखट पर बैठने लगा। वह सूखकर कलफ चढे कपडें जैसा हो गया था। उसका रंग जो पहले बन्दर के चेहरे जैसा लाल चुकन्दर था झुलस कर कत्थई हो गया था। बाल सफेद हो गये थे। चारखाने की लुंगी बांधे मैली बनियान चढाए वह बिल्कुल हिन्दुस्तान की गलियों में घूमते पुराने गोरखों की मानिन्द लगता था। उसकी नकली और असली आंख में फर्क मालूम होने लगा था। शीशा तो अब भी वैसा ही चमकदार झिलमिल और 'अंग्रेज था मगर असली आंख गंदली बे रौनक होकर जरा दब गई थी। अब तो ज्यादातर वह शीशे वाली आंख के बगैर ही घूमा करता था। एक दिन मैंने खिडकी में से देखा तो वह जामुन के पेड के नीचे खडा खोए-खोए अंदाज में कभी जमीन से कोई कंकर उठाता, उसे बच्चों की तरह देखकर मुस्कुराता फिर पूरी ताकत से उसे दूर फेंक देता। मुझे देखकर वह मुस्कुराया और सिर हिलाने लगा।

'कैसी तबीयत है साहब

उत्सुकता ने उक्साया तो मैंने पूछा।

'अच्छा है- अच्छा है। वह मुस्कुरा कर शुक्रिया अदा करने लगा।

मैंने बाहर जाकर इधर-उधर की बातें शुरू कीं। जल्दी ही वह मुझसे बातें करने में बेतकल्लुफी महसूस करने लगा। फिर एक दिन मैंने मौका पाकर कुरेदना शुरू किया। कई दिन की कोशिशों के बाद मुझे मालूम हुआ कि वह एक शरीफजादी का नाजायज बेटा था। उसके नाना ने एक किसान को कुछ रुपए दे दिलाकर उसे पालने-पोसने को राजी कर लिया। मगर यह मामला इस सफाई से किया गया कि उस किसान को भी पता न चल सका कि वह किस खान्दान का है। किसान बडा कुटिल था। उसके कई बेटे थे, जो जैक्सन को तरह-तरह से सताया करते थे। रोज पिटाई होती थी, मगर खाने को अच्छा मिलता था। उसने बारह तेरह बरस की उम्र से भागने की कोशिशें आरंभ की। तीन-चार साल की लगातार कोशिशों के बाद वह लुढकता-पुढकता धक्के खाता लन्दन पहुंचा। वहां उसने कई पेशे बारी इख्तियार किए, मगर इस अर्से में वह इतना ढीट, मक्कार और स्वच्छंद हो गया था कि दो दिन से ज्यादा कोई नौकरी न रहती।

वह शक्ल-सूरत से रोबीला और खूबसूरत था इस वजह से लडकियों में काफी लोकप्रिय था। डार्थी उसकी बीवी नकचढे खान्दान की लडकी थी। उलार और ओछी भी। उसका बाप ऊंची पहुंच वाला शख्स था। जैक्सन ने सोचा इस खानाबदोशी की जिन्दगी में बडे झंझट हैं। आए दिन पुलिस और कचहरी से वास्ता पडता है। क्यों न डार्थी से शादी करके जिन्दगी संवार ली जाए। डार्थी उसके बस के बाहर थी, उसकी पहुंच से दूर थी। वह ऊंची सोसाइटी में उठने-बैठने की आदी थी। उस वक्त जैक्सन की दोनों आंखें असली थीं। यह तो जब वह डार्थी से लडकर शराबखानों का हो रहा। वहां किसी से मारपीट में एक आंख जाती रही। तब तक उसकी सिर्फ बडी बेटी पैदा हुई थी।

'हां तो तुमने डार्थी को कैसे घेर का फांसा?

मैंने और कुरेदा।

'जब मेरी दोनों आंखें सलामत थीं....

जैक्सन मुस्कुराया

किसी न किसी तरह डार्थी हत्थे चढ गई। कम्बख्त कुंआरी भी नहीं थी। मगर ऐसे खेल रचाए कि बाप के न-न करते रहने के बावजूद शादी कर ली।

बाप ने भी लडकी की मजबूरियों को समझ लिया। और बीवी के रोज-रोज के तकाजों से मजबूर होकर उसे हिन्दुस्तान भिजवा दिया। यह वह दौर था जब हर निकम्मा अंग्रेज हिन्दुस्तान के सर मढ दिया जाता था भले वहां जूते गांठता हो, यहां आते ही साहब बन बैठता।

जैक्सन ने हद कर दी। वह हिन्दुस्तान में भी वैसा ही निकम्मा और लाउबाली साबित हुआ। सब से बडी खराबी जो उसमें थी, वह उसका छिछोरापन था। बजाय साहब बहादुरों की तरह रौब-दाब से रहने के वह निहायत भोंडेपन से नीटो लोगों में घुलमिल जाता था। जब वह बस्ती के इलाके में जंगलात के मोहकमे में तैनात हुआ तो क्लब के बजाय न जाने किन चन्डूखानों में घूमता फिरता था। आस-पास सिर्फ चंद अंग्रेजों के बंगले थे, बदकिस्मती से ज्यादातर लोग अधिक उम्र के संभ्रान्त थे। सुनसान क्लब में जहां हिन्दुस्तानियों और कुत्तों को दाखिल होने की इजाजत नहीं थी, ज्यादातर उल्लू बोला करते थे। सब ही अफसरों की बीवियां अपने वतन में रहती थीं। जब कभी किसी अफसर की बीवी हिन्दुस्तान आ जाती तो वह उसे बजाय जंगल में लाने के स्वयं छुट्टी लेकर शिमला या नैनीताल चला जाता। फिर बीवी हिन्दुस्तान की गिलाजत से आजिज आकर वापस चली जाती और उसका साहब ठण्डी आहें भरता, बीवी की हसीन यादें लिए लौट आता। साहब लोग वैसे अपना काम नीटो औरतों से चला लिया करते थे। इस किस्म के तअल्लुकात से किसी का नुकसान नहीं होता था। हिसाब भी सस्ता रहता था। हिन्दुस्तान का भी फायदा था इसमें। एक तो उनसे पैदा होने वाली औलाद खास गोरी हुआ करती थी, कभी काली भी, दूसरा यह कि उनके बारसूख, बाप उनके लिए अनाथालय और स्कूल खुलवा दिया करते थे। सरकारी खर्च पर उनकी दूसरे हिन्दुस्तानियों के मुकाबले बेहतर शिक्षा-दीक्षा होती थी। यह ऐंग्लोइण्डियन गोरी शक्ल वाला वर्ग अंग्रेजों से बस दूसरे नम्बर पर था। लडके रेलवे जंगलात और नेवी में बडी आसानी से खप जाते थे। इनकी मामूली शक्ल वाली लडकियों को भी सुन्दर हिंदुस्तानी लडकियों से बेहतर नौकरियां मिल जाती और वो स्कूल, ऑफिसों और अस्पतालों की रौनक बढातीं.... जो ज्यादा हसीन होतीं वो बडे-बडे शहरों के पश्चिमग्रस्त ब्यूटी मार्केट में बडी सफल साबित होती थीं।

जैक्सन साहब जब हिन्दुस्तान आया तो उसमें काने शख्स की तमाम बुराइयां कसरत से मौजूद थीं। कानेपन के बाद शराब उसके व्यक्तित्व की दूसरी पहचान थी। हर जगह उसकी किसी न किसी से ठन जाती और उसका तबादला हो जाता। जंगलात से हटाकर उसे पुलिस में भेज दिया गया, जिसका उसे बहुत मलाल था। क्योंकि वहां एक पहाडन पर उसका बुरी तरह दिल आ गया था। जबलपुर पहुंचकर वह उसे जरूर बुलवा लेता, लेकिन वहां उसे एक नटिनी से प्रेम हो गया। ऐसा जोरदार इश्क कि उसकी बीवी सारी छुट्टियां नैनीताल में गुजार कर वापस चली गई और वह न गया। काम की अधिकता का बहाना करता रहा, छुट्टी न मिलने का रोना रोता रहा। मगर डार्थी के डैडी के कितने ही दोस्त थे, जिनके दबाव से उसे जबरदस्ती छुट्टी दिलवाई गई। जब वह नैनीताल पहुंचा तो उसका कतई दिल न लगा। एक तो डार्थी उसकी जुदाई में उस पर बेतरह आशिक हो गई थी और चाहती थी, दोबार हनीमून मनाया जाए। दूसरी तरफ उसे जैक्सन की प्रेम पध्दति से बडी घबराहट होती थी। वह इतने दिन हिन्दुस्तान में रहकर एकदम अजनबी हो चुका था। पहाडपन और नटनी, दोनों ने हिंदुस्तानी पतिव्रता पत्नियों की तरह खिदमत करके उसका दिमाग खराब कर दिया था। साल में सिर्फ दो महीने आने वाली बीवी भी बिल्कुल अजनबी हो गई थी। फिर उसके सामने जैक्सन को कई बंधन मानने पडते। एक दिन नशे में उसने अपनी बीवी से भी पहाडन और नटनी के अंदाज में प्यार करने की इच्छा प्रकट कर दी। वह ऐसा भडकी कि जैक्सन के छक्के ही छूट गए। उसने बहुत जिरह की कि कहीं तुम भी दूसरे बेगैरत और नीच अंग्रेजों की तरह लोकल औरतों से मेल-जोल तो नहीं बढाने लगे हो।

जैक्सन ने कसमें खायीं और डार्थी को इतना प्यार किया कि वह उसकी नेकचलनी की कायल हो गई। उसे बडा तरस आया और वह उसे बडे प्यार से जबलपुर ले आया। मगर वह वहां की मक्खियां और गर्मियों से बौखला कर पागलों जैसी हो गई। और तो सब वह झेल जाती मगर जब उसके बाथरूम में 'दोमुंही निकली तो वह उसी वक्त सामान बांधने लगी। जैक्सन ने बहुत समझाया कि यह सांप नहीं और काटता भी नहीं, लेकिन उसने एक न सुनी और दूसरे दिन देहली चली गई।

वहां से उसने जोर लगाकर उसका ट्रांसफर बम्बई करवा दिया। यह उस जमाने की बात है जब दूसरी जंग शुरू हो चुकी थी। नटनी की जुदाई और डार्थी का बम्बई में स्थाई डेरा उसकी आत्मा को दीमक बन कर चाट रहा था। सक्खू बाई बच्चों की आया की मदद के लिए रखी गई थी। मगर जब बारिश से आजिज आकर डार्थी बच्चों समेत इंग्लैण्ड गई तो जैक्सन की कृपा दृष्टि उस पर पडी।

उफ! किस कदर उलझी हुई दास्तान थी साहब की, क्योंकि सक्खू बाई गनपत हैड बैरे की रखैल थी। वह उसे पवन पुले से फुसला लाया था। वैसे बीवी बच्चों वाला आदमी था। बोझ से बचने के लिए उसे बतौर असिस्टेंट के, बच्चों की आया के नीचे रखवा दिया था। सक्खू बाई अपनी इस नौकरी से जिसमें फर्श पर पोंछा लगाने, बर्तन धोने के अलावा गनपत को खुश करना भी शामिल था, काफी संतुष्ट थी।

गनपत उसे कभी अपने किसी दोस्त को भी उस पर कृपा करने या कर्ज के बदले दे दिया करता। लेकिन बडी चालाकी से ताकि सक्खू बाई उखडने न पाए। वह पीने से तो पहले से ही कुछ वाकिफ थी। गनपत की सोहबत में बाकायदगी से रोज ठर्रा चढाने लगी। जैक्सन भी कभी-कभी उसके मजे लेने लगा। फिर वह अक्सर मेम साहब की एवजी भुगतने लगी। इस तरह गनपत के चक्कर से छुट्टी मिली। वह उल्टा उसकी सारी पगार ऐंठ लिया करता था। उन्हीं दिनों गनपत आर्मी में हेड बैरे की हैसियत से मिडिल ईस्ट चला गया और सक्खू बाई हमेशा के लिए मेम साहब की जगह जम गई। बस जब मेम साहब कभी छुट्टिों में आती तो वह वक्ती तौर पर अपनी खोली में ट्रांसफर हो जाती। और जब वह अपनी कूकदार आवाज में 'अयू.... यू.... तब वह फौरन सब काम छोडछाड कर यस मेम साहब.... कहकर लपकती। यों तो मेम साहब.... मेम साहब... कहना सीखकर वह अपने को अंग्रेजी दां समझने लगी थी। अंग्रेजी भाषा में 'यस, नो, डैमफूल, सॉरी के अलावा और है ही क्या? हाकिमों का इन चंद लफ्जों में ही काम निकल जाता है। चौडे भारी-भरकम साहित्यिक जुमलों की जरूरत नहीं पडती। तांगे के घोडे को टख-टख और चाबुक की चमक ही काफी होती है। मगर सक्खू बाई को यह नहीं मालूम था कि अंग्रेज की गाडी में जुता हुआ मरियल घोडा क्षुब्ध होकर गाडी पलट चुका था और अब उसकी लगामें दूसरे हाथों में थीं। उसकी दुनिया बहुत छोटी थी। वह 'खुद, उसके दो बच्चे और उसका 'मरद। जब मेम साहब हिन्दुस्तान आया करती थीं तब भी सक्खू बडी उदारता से 'एवजी छोडकर फिर नैन्सी के हाथ के नीचे काम करने लगती। उसे मेम साहब से किसी तरह की जलन नहीं थी। मेम साहब 'वेस्टर्न ब्यूटी का नमूना हो तो हो। हिंदुस्तानी सौन्दर्य के पैमाने पर उसे तौला जाता तो उसे अण्डे जैसा शून्य मिलता बस। उसकी त्वचा खुर्चे हुए शलजम की तरह कच्ची-कच्ची थी। जैसे उसे पूरी तरह पकने से पहले उखाड लिया गया हो! या उसे ठण्डी बेजान कब्र में बरसों दफन करने के बाद निकाला हो। उसके छिदरे मैली चांदी के रंग के बाल बिल्कुल बुढियों के बालों की तरह लगते थे। इसलिए सक्खू बाई के तबके के लोग उसे बुढिया समझते थे। या फिर सूरजमुखी जिसे हिन्दुस्तान में बडा दयनीय समझा जाता था, जब वह मुंह धोए हुए होती तो उसकी पेंसिल से बनाई हुई भवेंगायब होतीं। चेहरा ऐसा मालूम होता गोया किसी ने तस्वीर को सस्ते रबड से बिगाड दिया हो।

फिर डार्थी ठण्डी थी, अजनबी थी। जैक्सन का वजूद उसके लिए एक घिनावनी गाली था। वह अपने को निहायत बदनसीब और सताई हुई समझती थी, और शादी को नाकाम बनाने में वह काफी हद तक सही थी। भले जैक्सन कितने ही बुलंद ओहदे पर क्यों न पहुंच जाता वह उस पर गर्व नहीं कर सकती थी। क्योंकि उसे मालूम था कि ये सारे ओहदे खुद उसके बाप के दिलवाए हुए हैं। जो किसी भी अहमक को दिलवाए जाते तो वह आसमान को छू लेता। इसके विपरीत सक्खू बाई अपनी थी, गर्मागरम थी। उसने पवन पुल पर अलाव की तरह भडक कर न जाने कितनों के हाथ तापने का सामान किया था। वह गनपत की रखैल थी जो अपनी पुरानी कमीज की तरह उसे दोस्तों को उधार दे दिया करता था। उसके लिए जैक्सन साहब देवता था शराफत का औतार था। उसके और गनपत के प्यार करने के तरीके में कितना फर्क था। गनपत तो उसे मुंह का मजा बदलने के लिए चबा-चबा कर थूकता। और साहब एक लाचार जरूरत मंद की तरह उसे अमृत समझता, उसके प्यार में एक बच्चे जैसी लाचारी थी। जब अंग्रेज अपना टाट प्लान लेकर चले गए तब वह नहीं गया। डार्थी ने उसे बुलाने के सारे जतन कर डाले, धमकियां दीं, मगर उसने इस्तीफा दे दिया और नहीं गया।

'साहब तुम्हें अपने बच्चे भी याद नहीं आते?

मैंने एक दिन उससे पूछा! बहुत याद आते हैं। फिल्लू शाम को देर से आती है और पीटू लौंडों के साथ खेलने चला जाता है। मैं चाहता ं, वे कभी मेरे पास भी बैठें। वह इधर-उधर की उडाने लगा।

पीटू और फ्लोमिना नहीं 'एलेजेंक्डर और लीजा? मैंने भी डिठाई ओढ ली।

'नहीं.... नहीं वह हंसकर सिर हिलाने लगा। पिल्ले तो कुतिया से मानूस होते हैं, उस कुत्ते को नहीं पहचानते जो उनके वजूद में साझीदार होता है। उसने अपनी असली आंख मार कर कहा।

'यह जाता क्यों नहीं, यहां पडा सड रहा है।

मुझे ही नहीं, आसपास के सभी लोगों को बेचैनी-सी होती थी। जबकि कुछ लोग खयाल जाहिर करते 'जासूस है, उसे जानबूझकर यहां रखा गया है। ताकि यह हमारे मुल्क में दोबारा ब्रितानी राज को लाने में मदद करें

गली के लौंडे, जब कभी वह दिखाई देता तो पूछते- 'साहब विलायत कब जाएगा?

'साहब 'कुइट इण्डिया काए को नई करता?

'हिन्दुस्तान छोड दो साहब

'अंग्रेज छोरा चला गया

'वह गोरा-गोरा चला गया

'फिर तुम काए को नई जाता

सडक पर आवारा घूमने वाले लौंडे उसके पीछे धेरी लगाते, आवाजें कसते।

'ं.... ं..... ऊं, जाएगा, जाएंगा बाबा।

वह सर हिलाकर मुस्कुराता और अपनी खोली में चला जाता। तब मुझे उसके ऊपर बडा तरस आता। कहां हैं दुनिया के रखवाले। जो हर कमजोर मुल्क को तहजीब सिखाते फिरते हैं। नंगों को पैंटें-फ्रांकें पहनाते फिरते हैं। अपने सफेद खून की श्रेष्ठता का ढोल पीटते हैं। उनका ही खून- जैक्सन के रूप में कितना नंगा हो चुका है। मगर उसे मिशनरी ढांकने नहीं आता। और जब गली के लफंगे तक हार के चले जाते तो वह अपनी खोली के सामने बैठकर बीडी पिया करता। उसकी इकलौती असली आंख दूर क्षितिज पर उस मुल्क की सरहदों की तलाश करती, जहां न कोई गोरा है, न काला, न कोई जबरदस्ती जा सकता है और न आ सकता है। और न वहां बदकार माएं अपने नाजायज बच्चों को तेरी-मेरी चौखट पर जन कर खुद अपनी संभ्रांत दुनिया आबाद कर लेती हैं।

सक्खू बाई आसपास के घरों में महरी का काम करती अच्छा-खासा कमा लेती। इसके इलावा वह बांस की डलियां, मेज कुर्सियां वगैरा भी बना लेती थी, इस धंधे से भी कुछ आमदनी हो जाती। जैक्सन भी अगर नशे में न होता तो उल्टी-सीधी बेपेंदे की टोकरियां बनाया करता। शाम को सक्खू बाई उसके लिए एक ठरर्ें का अध्दा ला देती जिसे वह फौरन चढा जाता और फिर उससे लडने लगता। एक रात उसने जाने कहां से ठर्रे की पूरी बोतल हासिल कर ली और सारी रात पीता रहा। रात के आखिरी पहर में वही खोली के आगे पडकर सो गया। फ्लोमिना और पिट्टू उसके ऊपर से फलांग कर स्कूल चले गए। सक्खू बाई भी थोडी देर उसको गालियां देकर चली गई। दोपहर तक वह वहीं पडा रहा। शाम को जब बच्चे आए तो वह दीवार से टेक लगाए बैठा था, उसे जोर का बुखार था। जो दूसरे दिन बढकर सरशाम (दिमागी बुखार) की सूरत इखित्यार कर गया। सारी रात वह न जाने क्या-क्या बडबडाता रहा। न जाने किसे-किसे याद करता रहा, शायद अपनी मां को जिसे उसने कभी नहीं देखा था। जो शायद इस वक्त किसी शान्दार गेदेरिंग में नैतिक सुधार पर भाषण दे रही होगी या वह बाप याद आ रहा हो, जिसने नस्ल चलाने वाले सांड की सेवाएं लेने के बाद उसे अपने जिस्म से बही हुई गिलाजत से ज्यादा अहमियत नहीं दी और जो इस वक्त किसी और गुलाम देश में बैठा अपनी कौम का साम्राज्य कायम रखने के मनसूबे बना रहा होगा या डार्थी के उलाहना भरे एहसान याद आ रहे हों जो बेरहम किसान के हंटरों की तरह सारी उम्र उसकी संवदेना पर बरसते रहे या शायद वो गोलियां जो उसकी मशीनगन से बेगुनाहों के सीनों के पार हुई और आज पलट कर उसकी रूह को डस रही थीं... वह रात भर बडबडाता रहा- चिल्लाता रहा- सर पटखता रहा - सीने को धौंकनी चलती रही। दरोदीवार ने पुकार-पुकार कर कहा-

'मेरा कोई मुल्क नहीं- कोई नस्ल नहीं- कोई रंग नहीं....

'मेरा मुल्क और नस्ल सक्खू बाई है जिसने तुझे बेपनाह प्यार दिया। क्योंकि वह भी तो अपने देश में बेवतन है। बिल्कुल मेरी तरह। उन करोडों इंसानों की तरह जो दुनिया के हर कोने में पैदा होते हैं, न उनके जन्म पर शहनाइयां बजती हैं और न उनकी मौत पर मातम होते हैं

पौ फट रही थी। मिलों की चिमनियां धुआं उगल रही थीं और मजदूरों की कतारों को निगल रही थीं। थकी हारी रंडियां अपने रात भर के खरीददारों के चंगुल से पिंड छुडा कर उन्हें रुख्सत कर रही थीं।

'हिन्दुस्तान छोड दो।

'कुइट इण्डिया

कटाक्ष और घृणा में डूबी आवाजें उसके जेहन पर हथौडों की तरह पड रही थीं। उसने एक बार हसरत से अपनी औरत की तरफ देखा, जो वहीं पट्टी पर सर रख कर सो गई थी। फ्लोमीना रसोई के दरवाजे पर टाट के पर्दों पर सो रही थी। पीटू उसकी कमर में मुंह घुसाए पडा था। कलेजे में एक हूक सी उठी और उसकी असली आंख से एक आंसू टपक कर मैली दरी में जज्ब हो गया।

बर्तानवीराज की मिटती हुई निशानी ऐरिक विलियम जैक्सन ने हिन्दुस्तान छोड दिया।
हिंदुस्तान छोड़ दो - इस्मत चुग़ताई

COMMENTS

BLOGGER
Name

a-r-azad,1,aadil-rasheed,1,aaina,4,aalam-khurshid,2,aale-ahmad-suroor,1,aam,1,aanis-moin,6,aankhe,4,aansu,1,aas-azimabadi,1,aashmin-kaur,1,aashufta-changezi,1,aatif,1,aatish-indori,6,aawaz,4,abbas-ali-dana,1,abbas-tabish,1,abdul-ahad-saaz,4,abdul-hameed-adam,4,abdul-malik-khan,1,abdul-qavi-desnavi,1,abhishek-kumar,1,abhishek-kumar-ambar,5,abid-ali-abid,1,abid-husain-abid,1,abrar-danish,1,abrar-kiratpuri,3,abu-talib,1,achal-deep-dubey,2,ada-jafri,2,adam-gondvi,11,adibi-maliganvi,1,adil-hayat,1,adil-lakhnavi,1,adnan-kafeel-darwesh,2,afsar-merathi,4,agyeya,5,ahmad-faraz,13,ahmad-hamdani,1,ahmad-hatib-siddiqi,1,ahmad-kamal-parwazi,3,ahmad-nadeem-qasmi,6,ahmad-nisar,3,ahmad-wasi,1,ahmaq-phaphoondvi,1,ajay-agyat,2,ajay-pandey-sahaab,3,ajmal-ajmali,1,ajmal-sultanpuri,1,akbar-allahabadi,6,akhtar-ansari,2,akhtar-lakhnvi,1,akhtar-nazmi,2,akhtar-shirani,7,akhtar-ul-iman,1,akib-javed,1,ala-chouhan-musafir,1,aleena-itrat,1,alhad-bikaneri,1,ali-sardar-jafri,6,alif-laila,63,allama-iqbal,10,alok-dhanwa,2,alok-shrivastav,9,alok-yadav,1,aman-akshar,2,aman-chandpuri,1,ameer-qazalbash,2,amir-meenai,3,amir-qazalbash,3,amn-lakhnavi,1,amrita-pritam,3,amritlal-nagar,1,aniruddh-sinha,2,anjum-rehbar,1,anjum-rumani,1,anjum-tarazi,1,anton-chekhav,1,anurag-sharma,3,anuvad,2,anwar-jalalabadi,2,anwar-jalalpuri,6,anwar-masud,1,anwar-shuoor,1,aqeel-nomani,2,armaan-khan,2,arpit-sharma-arpit,3,arsh-malsiyani,5,arthur-conan-doyle,1,article,57,arvind-gupta,1,arzoo-lakhnavi,1,asar-lakhnavi,1,asgar-gondvi,2,asgar-wajahat,1,asharani-vohra,1,ashok-anjum,1,ashok-babu-mahour,3,ashok-chakradhar,2,ashok-lal,1,ashok-mizaj,9,asim-wasti,1,aslam-allahabadi,1,aslam-kolsari,1,asrar-ul-haq-majaz-lakhnavi,10,atal-bihari-vajpayee,5,ataur-rahman-tariq,1,ateeq-allahabadi,1,athar-nafees,1,atul-ajnabi,3,atul-kannaujvi,1,audio-video,59,avanindra-bismil,1,ayodhya-singh-upadhyay-hariaudh,6,azad-gulati,2,azad-kanpuri,1,azhar-hashmi,1,azhar-sabri,2,azharuddin-azhar,1,aziz-ansari,2,aziz-azad,2,aziz-bano-darab-wafa,1,aziz-qaisi,2,azm-bahjad,1,baba-nagarjun,4,bachpan,9,badnam-shayar,1,badr-wasti,1,badri-narayan,1,bahadur-shah-zafar,7,bahan,9,bal-kahani,5,bal-kavita,108,bal-sahitya,115,baljeet-singh-benaam,7,balkavi-bairagi,1,balmohan-pandey,1,balswaroop-rahi,3,baqar-mehandi,1,barish,16,bashar-nawaz,2,bashir-badr,27,basudeo-agarwal-naman,5,bedil-haidari,1,beena-goindi,1,bekal-utsahi,7,bekhud-badayuni,1,betab-alipuri,2,bewafai,15,bhagwati-charan-verma,1,bhagwati-prasad-dwivedi,1,bhaichara,7,bharat-bhushan,1,bharat-bhushan-agrawal,1,bhartendu-harishchandra,3,bhawani-prasad-mishra,1,bhisham-sahni,1,bholenath,8,bimal-krishna-ashk,1,biography,38,birthday,4,bismil-allahabadi,1,bismil-azimabadi,1,bismil-bharatpuri,1,braj-narayan-chakbast,2,chaand,6,chai,15,chand-sheri,7,chandra-moradabadi,2,chandrabhan-kaifi-dehelvi,1,chandrakant-devtale,5,charagh-sharma,2,charkh-chinioti,1,charushila-mourya,3,chinmay-sharma,1,christmas,4,corona,6,d-c-jain,1,daagh-dehlvi,18,darvesh-bharti,1,daughter,16,deepak-mashal,1,deepak-purohit,1,deepawali,22,delhi,3,deshbhakti,43,devendra-arya,1,devendra-dev,23,devendra-gautam,7,devesh-dixit-dev,11,devesh-khabri,1,devi-prasad-mishra,1,devkinandan-shant,1,devotional,8,dharmveer-bharti,2,dhoop,4,dhruv-aklavya,1,dhumil,3,dikshit-dankauri,1,dil,145,dilawar-figar,1,dinesh-darpan,1,dinesh-kumar,1,dinesh-pandey-dinkar,1,dinesh-shukl,1,dohe,4,doodhnath-singh,3,dosti,27,dr-rakesh-joshi,2,dr-urmilesh,2,dua,1,dushyant-kumar,16,dwarika-prasad-maheshwari,6,dwijendra-dwij,1,ehsan-bin-danish,1,ehsan-saqib,1,eid,14,elizabeth-kurian-mona,5,faheem-jozi,1,fahmida-riaz,2,faiz-ahmad-faiz,18,faiz-ludhianvi,2,fana-buland-shehri,1,fana-nizami-kanpuri,1,fani-badayuni,2,farah-shahid,1,fareed-javed,1,fareed-khan,1,farhat-abbas-shah,1,farhat-ehsas,1,farooq-anjum,1,farooq-nazki,1,father,12,fatima-hasan,2,fauziya-rabab,1,fayyaz-gwaliyari,1,fayyaz-hashmi,1,fazal-tabish,1,fazil-jamili,1,fazlur-rahman-hashmi,10,fikr,4,filmy-shayari,9,firaq-gorakhpuri,8,firaq-jalalpuri,1,firdaus-khan,1,fursat,3,gajanan-madhav-muktibodh,5,gajendra-solanki,1,gamgin-dehlavi,1,gandhi,10,ganesh,2,ganesh-bihari-tarz,1,ganesh-gaikwad-aaghaz,1,ganesh-gorakhpuri,1,garmi,9,geet,2,ghalib-serial,1,gham,2,ghani-ejaz,1,ghazal,1207,ghazal-jafri,1,ghulam-hamdani-mushafi,1,girijakumar-mathur,2,golendra-patel,1,gopal-babu-sharma,1,gopal-krishna-saxena-pankaj,1,gopal-singh-nepali,1,gopaldas-neeraj,8,gopalram-gahmari,1,gopichand-shrinagar,2,gulzar,17,gurpreet-kafir,1,gyanendrapati,4,gyanprakash-vivek,2,habeeb-kaifi,1,habib-jalib,6,habib-tanveer,1,hafeez-jalandhari,3,hafeez-merathi,1,haidar-ali-aatish,5,haidar-ali-jafri,1,haidar-bayabani,2,hamd,1,hameed-jalandhari,1,hamidi-kashmiri,1,hanif-danish-indori,1,hanumant-sharma,1,hanumanth-naidu,2,harendra-singh-kushwah-ehsas,1,hariom-panwar,1,harishankar-parsai,7,harivansh-rai-bachchan,8,harshwardhan-prakash,1,hasan-abidi,1,hasan-naim,1,haseeb-soz,2,hashim-azimabadi,1,hashmat-kamal-pasha,1,hasrat-mohani,3,hastimal-hasti,5,hazal,2,heera-lal-falak-dehlvi,1,hilal-badayuni,1,himayat-ali-shayar,1,hindi,22,hiralal-nagar,2,holi,29,humaira-rahat,1,ibne-insha,8,ibrahim-ashk,1,iftikhar-naseem,1,iftikhar-raghib,1,imam-azam,1,imran-aami,1,imran-badayuni,6,imtiyaz-sagar,1,insha-allah-khaan-insha,1,interview,1,iqbal-ashhar,1,iqbal-azeem,2,iqbal-bashar,1,iqbal-sajid,1,iqra-afiya,1,irfan-ahmad-mir,1,irfan-siddiqi,1,irtaza-nishat,1,ishq,168,ishrat-afreen,1,ismail-merathi,2,ismat-chughtai,2,izhar,7,jagan-nath-azad,5,jaishankar-prasad,6,jalan,1,jaleel-manikpuri,1,jameel-malik,2,jameel-usman,1,jamiluddin-aali,5,jamuna-prasad-rahi,1,jan-nisar-akhtar,11,janan-malik,1,jauhar-rahmani,1,jaun-elia,14,javed-akhtar,18,jawahar-choudhary,1,jazib-afaqi,2,jazib-qureshi,2,jigar-moradabadi,10,johar-rana,1,josh-malihabadi,7,julius-naheef-dehlvi,1,jung,9,k-k-mayank,2,kabir,1,kafeel-aazar-amrohvi,1,kaif-ahmed-siddiqui,1,kaif-bhopali,6,kaifi-azmi,10,kaifi-wajdaani,1,kaka-hathrasi,1,kalidas,1,kalim-ajiz,1,kamala-das,1,kamlesh-bhatt-kamal,1,kamlesh-sanjida,1,kamleshwar,1,kanhaiya-lal-kapoor,1,kanval-dibaivi,1,kashif-indori,1,kausar-siddiqi,1,kavi-kulwant-singh,2,kavita,243,kavita-rawat,1,kedarnath-agrawal,4,kedarnath-singh,1,khalid-mahboob,1,khalida-uzma,1,khalil-dhantejvi,1,khat-letters,10,khawar-rizvi,2,khazanchand-waseem,1,khudeja-khan,1,khumar-barabankvi,4,khurram-tahir,1,khurshid-rizvi,1,khwab,1,khwaja-meer-dard,4,kishwar-naheed,2,kitab,22,krishan-chandar,1,krishankumar-chaman,1,krishn-bihari-noor,11,krishna,9,krishna-kumar-naaz,5,krishna-murari-pahariya,1,kuldeep-salil,2,kumar-pashi,1,kumar-vishwas,2,kunwar-bechain,9,kunwar-narayan,5,lala-madhav-ram-jauhar,1,lata-pant,1,lavkush-yadav-azal,3,leeladhar-mandloi,1,liaqat-jafri,1,lori,2,lovelesh-dutt,1,maa,26,madan-mohan-danish,2,madhavikutty,1,madhavrao-sapre,1,madhuri-kaushik,1,madhusudan-choube,1,mahadevi-verma,4,mahaveer-prasad-dwivedi,1,mahaveer-uttranchali,8,mahboob-khiza,1,mahendra-matiyani,1,mahesh-chandra-gupt-khalish,2,mahmood-zaki,1,mahwar-noori,1,maikash-amrohavi,1,mail-akhtar,1,maithilisharan-gupt,3,majdoor,13,majnoon-gorakhpuri,1,majrooh-sultanpuri,5,makhanlal-chaturvedi,3,makhdoom-moiuddin,7,makhmoor-saeedi,1,mangal-naseem,1,manglesh-dabral,4,manish-verma,3,mannan-qadeer-mannan,1,mannu-bhandari,1,manoj-ehsas,1,manoj-sharma,1,manzoor-hashmi,2,manzoor-nadeem,1,maroof-alam,23,masooda-hayat,2,masoom-khizrabadi,1,matlabi,3,mazhar-imam,2,meena-kumari,14,meer-anees,1,meer-taqi-meer,10,meeraji,1,mehr-lal-soni-zia-fatehabadi,5,meraj-faizabadi,3,milan-saheb,2,mirza-ghalib,59,mirza-muhmmad-rafi-souda,1,mirza-salaamat-ali-dabeer,1,mithilesh-baria,1,miyan-dad-khan-sayyah,1,mohammad-ali-jauhar,1,mohammad-alvi,6,mohammad-deen-taseer,3,mohammad-khan-sajid,1,mohan-rakesh,1,mohit-negi-muntazir,3,mohsin-bhopali,1,mohsin-kakorvi,1,mohsin-naqwi,2,moin-ahsan-jazbi,4,momin-khan-momin,4,motivational,11,mout,5,mrityunjay,1,mubarik-siddiqi,1,muhammad-asif-ali,1,muktak,1,mumtaz-hasan,3,mumtaz-rashid,1,munawwar-rana,29,munikesh-soni,2,munir-anwar,1,munir-niazi,5,munshi-premchand,17,murlidhar-shad,1,mushfiq-khwaza,1,mushtaq-sadaf,2,mustafa-akbar,1,mustafa-zaidi,2,mustaq-ahmad-yusufi,1,muzaffar-hanfi,26,muzaffar-warsi,2,naat,1,nadeem-gullani,1,naiyar-imam-siddiqui,1,nand-chaturvedi,1,naqaab,2,narayan-lal-parmar,3,narendra-kumar-sonkaran,3,naresh-chandrakar,1,naresh-saxena,4,naseem-ajmeri,1,naseem-azizi,1,naseem-nikhat,1,naseer-turabi,1,nasir-kazmi,8,naubahar-sabir,2,naukari,1,navin-c-chaturvedi,1,navin-mathur-pancholi,1,nazeer-akbarabadi,16,nazeer-baaqri,1,nazeer-banarasi,6,nazim-naqvi,1,nazm,191,nazm-subhash,3,neeraj-ahuja,1,neeraj-goswami,2,new-year,21,nida-fazli,34,nirankar-dev-sewak,2,nirmal-verma,3,nirmala,6,nirmla-garg,1,nizam-fatehpuri,26,nomaan-shauque,4,nooh-aalam,2,nooh-narvi,2,noon-meem-rashid,2,noor-bijnauri,1,noor-indori,1,noor-mohd-noor,1,noor-muneeri,1,noshi-gilani,1,noushad-lakhnavi,1,nusrat-karlovi,1,obaidullah-aleem,5,omprakash-valmiki,1,omprakash-yati,8,pandit-dhirendra-tripathi,1,pandit-harichand-akhtar,3,parasnath-bulchandani,1,parveen-fana-saiyyad,1,parveen-shakir,12,parvez-muzaffar,6,parvez-waris,3,pash,8,patang,13,pawan-dixit,1,payaam-saeedi,1,perwaiz-shaharyar,2,phanishwarnath-renu,2,poonam-kausar,1,prabhudayal-shrivastava,1,pradeep-kumar-singh,1,pradeep-tiwari,1,prakhar-malviya-kanha,2,pratap-somvanshi,7,pratibha-nath,1,prayag-shukl,3,prem-lal-shifa-dehlvi,1,prem-sagar,1,purshottam-abbi-azar,2,pushyamitra-upadhyay,1,qaisar-ul-jafri,3,qamar-ejaz,2,qamar-jalalabadi,3,qamar-moradabadi,1,qateel-shifai,8,quli-qutub-shah,1,quotes,2,raaz-allahabadi,1,rabindranath-tagore,3,rachna-nirmal,3,raghuvir-sahay,4,rahat-indori,31,rahbar-pratapgarhi,2,rahi-masoom-raza,6,rais-amrohvi,2,rajeev-kumar,1,rajendra-krishan,1,rajendra-nath-rehbar,1,rajesh-joshi,1,rajesh-reddy,7,rajmangal,1,rakesh-rahi,1,rakhi,6,ram,38,ram-meshram,1,ram-prakash-bekhud,1,rama-singh,1,ramapati-shukla,4,ramchandra-shukl,1,ramcharan-raag,2,ramdhari-singh-dinkar,9,ramesh-chandra-shah,1,ramesh-dev-singhmaar,1,ramesh-kaushik,2,ramesh-siddharth,1,ramesh-tailang,2,ramesh-thanvi,1,ramkrishna-muztar,1,ramkumar-krishak,3,ramnaresh-tripathi,1,ranjan-zaidi,2,ranjeet-bhattachary,2,rasaa-sarhadi,1,rashid-kaisrani,1,rauf-raza,4,ravinder-soni-ravi,1,rawan,4,rayees-figaar,1,raza-amrohvi,1,razique-ansari,13,rehman-musawwir,1,rekhta-pataulvi,7,republic-day,2,review,12,rishta,2,rishte,1,rounak-rashid-khan,2,roushan-naginvi,1,rukhsana-siddiqui,2,saadat-hasan-manto,9,saadat-yaar-khan-rangeen,1,saaz-jabalpuri,1,saba-bilgrami,1,saba-sikri,1,sabhamohan-awadhiya-swarn-sahodar,2,sabir-indoree,1,sachin-shashvat,2,sadanand-shahi,3,saeed-kais,2,safar,1,safdar-hashmi,5,safir-balgarami,1,saghar-khayyami,1,saghar-nizami,2,sahir-hoshiyarpuri,1,sahir-ludhianvi,20,sajid-hashmi,1,sajid-premi,1,sajjad-zaheer,1,salahuddin-ayyub,1,salam-machhli-shahri,2,saleem-kausar,1,salman-akhtar,4,samar-pradeep,6,sameena-raja,2,sandeep-thakur,3,sanjay-dani-kansal,1,sanjay-grover,3,sansmaran,9,saqi-faruqi,2,sara-shagufta,5,saraswati-kumar-deepak,2,saraswati-saran-kaif,2,sardaar-anjum,2,sardar-aasif,1,sardi,3,sarfaraz-betiyavi,1,sarshar-siddiqui,1,sarveshwar-dayal-saxena,11,satire,18,satish-shukla-raqeeb,1,satlaj-rahat,3,satpal-khyal,1,seema-fareedi,1,seemab-akbarabadi,2,seemab-sultanpuri,1,shabeena-adeeb,2,shad-azimabadi,2,shad-siddiqi,1,shafique-raipuri,1,shaharyar,21,shahid-anjum,2,shahid-jamal,2,shahid-kabir,3,shahid-kamal,1,shahid-mirza-shahid,1,shahid-shaidai,1,shahida-hasan,2,shahram-sarmadi,1,shahrukh-abeer,1,shaida-baghonavi,2,shaikh-ibrahim-zouq,2,shail-chaturvedi,1,shailendra,4,shakeb-jalali,3,shakeel-azmi,7,shakeel-badayuni,6,shakeel-jamali,5,shakeel-prem,1,shakuntala-sarupariya,2,shakuntala-sirothia,2,shamim-farhat,1,shamim-farooqui,1,shams-deobandi,1,shams-ramzi,1,shamsher-bahadur-singh,5,shanti-agrawal,1,sharab,5,sharad-joshi,5,shariq-kaifi,5,shaukat-pardesi,1,sheen-kaaf-nizam,1,shekhar-astitwa,1,sher-collection,13,sheri-bhopali,2,sherjang-garg,2,sherlock-holmes,1,shiv-sharan-bandhu,2,shivmangal-singh-suman,6,shivprasad-joshi,1,shola-aligarhi,1,short-story,16,shridhar-pathak,3,shrikant-verma,1,shriprasad,5,shuja-khawar,1,shyam-biswani,1,sihasan-battisi,5,sitaram-gupta,1,sitvat-rasool,1,siyaasat,8,sohan-lal-dwivedi,3,story,54,subhadra-kumari-chouhan,9,subhash-pathak-ziya,1,sudarshan-faakir,3,sufi,1,sufiya-khanam,1,suhaib-ahmad-farooqui,1,suhail-azad,1,suhail-azimabadi,1,sultan-ahmed,1,sultan-akhtar,1,sumitra-kumari-sinha,1,sumitranandan-pant,2,surajpal-chouhan,2,surendra-chaturvedi,1,suryabhanu-gupt,2,suryakant-tripathi-nirala,5,sushil-sharma,1,swapnil-tiwari-atish,2,syed-altaf-hussain-faryad,1,syeda-farhat,2,taaj-bhopali,1,tahir-faraz,3,tahzeeb-hafi,2,taj-mahal,2,talib-chakwali,1,tanhai,1,teachers-day,4,tilok-chand-mehroom,1,topic-shayari,33,toran-devi-lali,1,trilok-singh-thakurela,3,triveni,7,tufail-chaturvedi,3,umair-manzar,1,umair-najmi,1,upanyas,74,urdu,9,vasant,9,vigyan-vrat,1,vijendra-sharma,1,vikas-sharma-raaz,1,vilas-pandit,1,vinay-mishr,3,viral-desai,2,viren-dangwal,2,virendra-khare-akela,9,vishnu-nagar,2,vishnu-prabhakar,5,vivek-arora,1,vk-hubab,1,vote,1,wada,13,wafa,20,wajida-tabssum,1,wali-aasi,2,wamiq-jaunpuri,4,waseem-akram,1,waseem-barelvi,11,wasi-shah,1,wazeer-agha,2,women,16,yagana-changezi,3,yashpal,3,yashu-jaan,2,yogesh-chhibber,1,yogesh-gupt,1,zafar-ali-khan,1,zafar-gorakhpuri,5,zafar-kamali,1,zaheer-qureshi,2,zahir-abbas,1,zahir-ali-siddiqui,5,zahoor-nazar,1,zaidi-jaffar-raza,1,zameer-jafri,4,zaqi-tariq,1,zarina-sani,2,zehra-nigah,1,zia-ur-rehman-jafri,74,zubair-qaisar,1,zubair-rizvi,1,
ltr
item
जखीरा, साहित्य संग्रह: हिंदुस्तान छोड़ दो - इस्मत चुग़ताई
हिंदुस्तान छोड़ दो - इस्मत चुग़ताई
हिंदुस्तान छोड़ दो साहब मर गया जयंतराम ने बाजार से लाए हुए सौदे के साथ यह खबर लाकर दी। 'साहब- कौन साहब? 'वह कांटरिया साहब था न? 'वह काना साहब- जैक्सन।
जखीरा, साहित्य संग्रह
https://www.jakhira.com/2017/11/hindustan-chhod-do.html
https://www.jakhira.com/
https://www.jakhira.com/
https://www.jakhira.com/2017/11/hindustan-chhod-do.html
true
7036056563272688970
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Read More Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content