उर्दू शायरी के प्रकार
उर्दू जबान अपने आप में बेहद मीठी जबान है और फिर इस जबान में शायरी का क्या कहना यह तो सोने पे सुहागा होती है | उर्दू शायरी वैसे तो खालिस उर्दू में लिखी जाती है परन्तु शुरुवात से इसमें दो तबके चले आ रहे है एक इसे क्लिष्ट (कठिन) शब्दों में लिखता है और एक तबका कुछ इस तरह की यह हर आम-ओ-खास की जुबान हो जाए हर आम व्यक्ति की समझ में आ जाए |उर्दू भाषा में रचना लिखने वाले रचनाकार को शायर कहा जाता है वही हिंदी में रचनाकार को कवि कहाँ जाता है | प्राय: यह परंपरा रही है की शायर या कवि /लेखक अपने नाम के साथ एक उपनाम भी लिखता है जिसे उर्दू में तखल्लुस कहा जाता है | जैसे मिर्ज़ा असद-उल्ला खान अपने नाम के साथ तखल्लुस ग़ालिब लिखते थे रघुपति सहाय "फिराक" लिखते थे |
मिर्ज़ा ग़ालिब को पहले तबके में रखा जा सकता है वो काफी कठिन और खालिस उर्दू शब्दों में लिखा करते थे | इसी कारण उन्हें जौक और बाकि समकालीन शायरों की आलोचना का शिकार होना पड़ा पर उनकी शायरी की मिठास और रुमानियत के कारण आज उर्दू शायरी का मतलब मिर्ज़ा ग़ालिब हो गए है |
इस बार हम आपको उर्दू शायरी के कुछ प्रकार बताने जा रहे है, हो सकता है इसमें हमसे कुछ गुस्ताखी हो जाए तो इसे सही करने में मेरी मदद कीजियेगा |
उर्दू शायरी के प्रकार
1. ग़ज़ल:-
ग़ज़ल शेरो से बनती है और हर शेर दो पंक्तियों से मिलकर बनता है | ग़ज़ल के मुख्य हिस्से :-- मतला : - मतला ग़ज़ल का पहला शेर होता है और इस शेर में तुकबंदी होती है | मतला ही वो दो पक्तियो का शेर है जिससे ग़ज़ल की बहर, काफिया, और रदीफ निश्चित होती है |
- मक्ता : - यह ग़ज़ल का आखिरी शेर होता है | यह देखा गया है अधिकाशत: शायर ग़ज़ल के आखिरी शेर की दो पक्तियो में से किसी एक पंक्ति में अपना तखल्लुस यानि उपनाम लिखते है |
- बहर : - बहर असल में मीटर को कहा जाता है यानि की ग़ज़ल की सभी पक्तिया ऐसी नहीं होनी चाहिए की उसे पढ़ने याँ बोलने में तकलीफ आये | ग़ज़ल के सभी शेर मीटर में होना चाहिए |
- काफ़िया : - यह वो शब्द है जिससे ग़ज़ल में एकरूपता आती है | काफ़िया को रदीफ के पहले लिखा जाता है और यह पहले शेर यानि मतला की दोनों पंक्तियों में और ग़ज़ल के अन्य शेर के दूसरी पंक्तियों में लिखा जाता है | काफिया को अन्य शब्द में कहा जा सकता है परन्तु इसे एक ही उच्चारण में होना चाहिए (जैसे ज़र, घर, सर) काफिया मतला की दोनों पंक्तियों से लयबद्ध होता है |
- रदीफ : - यह शब्द मतले की दोनों पंक्तियों में दोहराया जाता है और ग़ज़ल के अन्य शेरो में भी | पूरी ग़ज़ल में एक रदीफ होती है | रदीफ किसी एक शब्द को बनाया जा सकता है और एक से अधिक शब्दों से भी | जिन ग़ज़ल में एक ही रदीफ पूरी ग़ज़ल में रहता है उसे "गैरग़ज़ल-मुरद्दफ़" कहा जाता है |
- ग़ज़ल का आकार: ग़ज़ल का आकार मूलतः कहने वाले और ग़ज़ल में कही गयी बात पर निर्भर करता है | वैसे किसी एक उपयुक्त ग़ज़ल में 7 शेर होते है | और ग़ज़ल 5 से 15 शेरो से मिलकर बन सकती है जिनमे मतला और मक्ता शामिल है |
उर्दू भाषा में रचना लिखने वाले रचनाकार को शायर कहा जाता है वही हिंदी में रचनाकार को कवि कहाँ जाता है | प्राय: यह परंपरा रही है की शायर या कवि /लेखक अपने नाम के साथ एक उपनाम भी लिखता है जिसे उर्दू में तखल्लुस कहा जाता है | जैसे मिर्ज़ा असद-उल्ला खान अपने नाम के साथ तखल्लुस ग़ालिब लिखते थे रघुपति सहाय "फिराक" लिखते थे |
2. नज़्म: -
यह उर्दू शायरी का वह हिस्सा है जिसमे शायर अपने मन के भावो को तुकबंदी से इतर होकर बयाँ करता है इसे दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है :
संगीतमय :- यह नज़्म कहने में संगीतमय प्रस्तुत की जाती है और किसी गीत की तरह इसका प्रादुर्भाव होता है संगीतमय नज़्म के हिस्से :
- काफिया :- नज़्म की पंक्ति का आखिरी शब्द काफ़िया कहलाता है | यह शायरी या फिर रुबाई हो सकती है |
- बहर : - जैसा की ग़ज़ल में उसी तरह नज़्म में भी सभी पंक्तिया मीटर में होना चाहिए |
- विषय : - नज़्म को कोई भी विषय पर हो सकती है परन्तु पूरी नज़्म किसी एक ही विषय के आसपास होनी चाहिए |
- आकार - यह नज़्म किसी भी आकार की हो सकती है |
- काफ़िया – जरुरी नहीं
- बहर – जरुरी नहीं
- विषय - इस तरह की नज़्म किसी भी विषय पर हो सकती है परन्तु पूरी नज़्म किसी एक विषय के आसपास ही होना चाहिए |
- आकार - यह नज़्म किसी भी आकार की हो सकती है |
अन्य प्रकार
- हम्द :- यह एक तरह की अल्लाह/खुदा की तारीफ में कही जाने वाली रचना है | इसका आकार कुछ भी हो सकता है |
- नात :-नात पैगम्बर मोहम्मद की तारीफ में कही जाने वाली रचना को कहते है | इसके आकार पर कोई पाबन्दी नहीं होती |
- मंक़बत :- मंक़बत वलियो की शान में कही जाने वाली रचना को कहते है | इसमें पांच (5) पंक्तियों आआआ से शुरू होती है | मंक़बत इब्न अबी तालिब की शान में कही जाती है | वे पैगम्बर मुहम्मद के चचाजाद भाई और दामाद थे और उनका चर्चित नाम हज़रत अली है | वे मुसलमानों के ख़लीफ़ा के रूप में जाने जाते हैं | इसके आकार पर भी कोई पाबन्दी नहीं है |
- मर्सिया :- मर्सिया शहीदों की शान में कही जाने वाली रचना कहलाती है | मर्सिया कर्बला के मैदान में शहीद होने वाले इमाम हुसेन और उनके साथियों की स्मृति में लिखा हुआ शोक-गीत | मर्सिया एक कविता है जो अहल अल-बैत, इमाम हुसैन और करबाला की लड़ाई के शहीदों की बहादुरी और याद दिलाने के लिए लिखी गई है | उर्दू में प्रसिद्ध मर्सिया लेखकों में मीर बाबर अली अनीस, मिर्जा सलामत अली दबीर, अली हैदर तबताबाई, नजम अफंडी, जोश मलिहाबादी और अन्य शामिल हैं। इसका आकार कितना भी बड़ा हो सकता है |
- क़सीदा :- इसमें किसी व्यक्ति की प्रशंसा की जाती है मुख्य रूप से राजा या समर्थक की | इसे ग़ज़ल प्रारूप में लिखा जाता है | कुछ शायर अपने बेहतरीन कसीदो के लिए जाने जाते है उनमे मिर्ज़ा सौदा भी है | क़सीदा मुख्य रूप से अरब संस्कृति में लिखा जाता है जहाँ यह इस्लाम आने के पूर्व से लिखा जाता रहा है|
- मसनवी :- मसनवी का अर्थ निकाले तो मतलब होता है "दो" | इसे शेर के रूप में लिखा जाता है इसमें शेर के दोनों मिसरे (पंक्तिया) एक ही रदीफ और काफिए में होते है | शेर के रदीफ और काफिये आपस में अलग-अलग हो सकते है | इसमें शेरो की संख्या की कोई सीमा नहीं है ये 8, 10 बारह या और भी ज्यादा हो सकती है | यहाँ मुख्य रूप से प्रेम को प्रदर्शित करती है |
- रूबाई :- इसमें पहली, दूसरी और चौथा मिसरा लयबद्ध होता है | इसके लिए 24 मीटर बताए गए है | इसकी सभी पंक्तियाँ किसी भी एक मीटर में हो सकती है | इसका विषय कुछ भी हो सकता है और यह चार पंक्तियों में लिखी जाती है |
- किता / क़ता :- – इसकी दूसरी और चौथी पंक्तिया या पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति लयबद्ध होती है इसमें कई शेर और पंक्तियाँ होती है |
- रेख्ती :- यह एक स्त्रीलिंग शब्द है और इसे ग़ज़ल प्रारूप में लिखा जाता है | इसकी सबसे खासियत और पहचान यह है की इसमें पुरुष शायर औरतो की जबान में शायरी करता है | रेख्ती में शायर औरतो के भाव, उनके जज्बात, दो महिलाओं की बातचीत, औरतो से संबधित मुद्दों पर शेर कहता है और यह सभी शेर औरत की जबान में होते है | ग़ालिब, जौक और मीर तकी मीर रेख्ती कहने में बहुत माहिर थे |
- शेर :- यहाँ ग़ज़ल का सबसे अहम हिस्सा होता है इसमें मतला, मक्ता शामिल है | इसके मुख्य हिस्से काफ़िया, रदीफ, बहर है | शेर सिर्फ दो पंक्ति का होता है |
- दोहे :- दोहा किसी भी विषय पर लिखा जाता है पर अधिकांशत: दार्शनिक प्रवत्ति का होता है इसे दो पंक्तियों में लिखा जाता है | कबीर और निदा फाजली के दोहे बहुत प्रसिद्द है | जैसे
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर || - तजकिरा :- इसका आकार काफी बड़ा होता है | उर्दू, फारसी, पंजाबी साहित्य में किसी लेखक की जीवनी को बताने वाली रचना के संग्रह को तज़किरा (यानि कुसुमावली) कहते है|
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रदीफ़ और काफिया भंडार हो ऐसा कोई एप्प है क्या