यह कविता हमें सीताराम गुप्ता जी ने भेजी है पीतमपुरा दिल्ली से
हाँ बहुत गरीब है
दाना मांझी
इसलिए धोनी पड़ रही है उसे
पत्नी की लाश
रखकर सर पर
अस्पताल से घर तक
लाश जो लिपटी है
एक चादर में
पाँव उसके भी
है चादर से बाहर
गरीब जिंदा हो
य हो मुर्दा
पाँव उसके सदा ही...
और घर
अस्पताल से सिर्फ
साठ किलोमीटर ही तो है
उसका घर
जिस रास्ते से
जा रहा है
दाना मांझी
पत्नी की लाश
और
बारह बरस की
रोटी बिलखती
बेटी के साथ
अकेला पर
अकेला कहा है दाना मांझी?
रास्ते के दोनों और
खड़े है बहुत से लोग
थामे हुए हाथो में
अपने-अपने मोबाइल फोन
बना रहे है विडियो
जिसे अपलोड करेंगे
सोशल मीडिया पर
दाना मांझी जब
थक जाता है
कुछ दूर चलने के बाद
तो उतारकर रख देता है शव
धरती पर
साथ चल रहे लोग भी
रुक जाते है
देखने के लिए ये
कि कैसे दोबारा
दाना मांझी उठाएगा
अपनी पत्नी का शव
ले जाने के लिए
साठ किलोमीटर दूर स्थित
अपने गाँव
कोई नहीं देता
दाना मांझी कि
पत्नी कि अर्थी को
कंधा
दे भी तो कैसे ?
अर्थी कहा है ?
अर्थी तो बनती है
मृतक की चारपाई की
बहिया निकालकर
गरीब के पास
कहा होती है चारपाई
चारपाई के बिना
कैसे बने अर्थी
हम अर्थियो को
बड़ी-बड़ी अर्थियो को
कंधा देते है
हम वो है
जो
अपनी लाश खुद
अपने कंधो पर
ढोते है
हम खुद मुर्दा है
और ये निराली शवयात्रा
सिर्फ दाना मांझी की
पत्नी कि शवयात्रा नहीं
ये शवयात्रा है
हमारी संवेदनहीनता की
ये शवयात्रा है
हमारे समाज की निरर्थकता की
ये शवयात्रा है
हमारे प्यारे राष्ट्र की
राष्ट्र जो सारे जहां से अच्छा है
उस अच्छाई की नंपुसकता की
और आप?
आप क्यों कसमसाने लगे
ये शवयात्रा है
आपकी
मेरी
हम सब की
– सीताराम गुप्ता
आपसे निम्न लिखे पते पर संपर्क कर सकते है
ए.डी. 106-सी, पीतमपुरा
दिल्ली-११००३४
09555622323
आपका मेल आईडी है Srgupta54@yahoo.co.in
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