असली हक़दार - दिनेश दर्पण

असली हक़दार - दिनेश दर्पण एक स्थान पर कुछ बच्चे बहस में उलझे हुए थे | तभी वह से एक साधू महात्मा गुजर रहे थे

असली हक़दार

एक स्थान पर कुछ बच्चे बहस में उलझे हुए थे | तभी वह से एक साधू महात्मा गुजर रहे थे | उन्होंने देखा कि बच्चे किसी बहस में उलझे हुए है, तो सोचकर वे उनके पास जा पहुचे कि कदाचित उन बच्चो की कुछ मदद कर सके या शायद बच्चो को उनकी सलाह की आवश्यकता हो |

वे बच्चो के पास पहुचकर बोले - "बच्चो किस बहस में उलझे हो? मुझे भी तो बताओ | शायद में तुम लोगो कि मदद कर सकू |"

बच्चो ने कहा - " बाबा हमें एक कुत्ते का पिल्ला मिला है लेकिन हम यह तय नहीं कर पा रहे है कि उसे कौन ले जाए? इसका निर्णय करने के लिए हमें एक तरकीब सूझी है कि हममे से जो कोई भी सबसे बड़ा झूठ बोलेगा, यह पिल्ला वही ले जायेगा | "

बारी-बारी से हमने अपने-अपने झूठ के किस्से सुनाये | अब हममे से कोई भी यह मानने को तैयार नहीं है कि उसके द्वारा बोला गया झूठ दूसरे के झूठ से छोटा है |

यह सुनकर साधू ने उपदेशात्मक भाव से उन बच्चो से कहा -"जब मै तुम्हारी उम्र का था तब तक मैंने कभी भी झूठ नहीं बोला और तो और मुझे तो झूठ शब्द तक की जानकारी नहीं थी |" राहत की साँस लेते हुए बच्चो ने साधू से कहा - " तब तो यह पिल्ला आप ही ले जाइये हमारी शर्त के अनुसार आप ही इसे ले जाने के हकदार है |"
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