पत्थर सुलग रहे थे कोई नक़्श-ए-पा न था - मुमताज़ राशिद

पत्थर सुलग रहे थे कोई नक़्श-ए-पा न था

पत्थर सुलग रहे थे कोई नक़्श-ए-पा न था
हम जिस तरफ चले थे, उधर रास्ता न था

परछाईयो के शहर में तन्हाईयां न पूछ
अपना शरीक-ए-ग़म कोई अपने सिवा न था

यूँ देखती है गुमशुदा लम्हों के मोड से
इस जिंदगी से जैसे कोई वास्ता न था

चेहरों पे जम गई थी खयालो की उलझने
लफ्जो की जुस्तजू में कोई बोलता न था

पत्तों के टूटने की सदा घुट के रह गयी
जंगल में दूर-दूर हवा का पता न था

'राशिद' किसे सुनाते गली में तिरी ग़ज़ल
उसके मकां का कोई दरीचा खुला न था - मुमताज़ राशिद
मायने
नक़्शे-पा = पैर का निशान, शरीके-गम = दुख में सम्मिलित, जुस्तजू = खोज, सदा = आवाज, दरीचा = खिडकी


paththar sulag rahe the koi naksh-e-paa n tha

paththar sulag rahe the koi naksh-e-paa n tha
ham jis taraf chale the, udhar rasta n tha

parchhaiyo ke shahar me tanhaiya n puch
apna sharik-e-gham koi apne siwa n tha

yu dekhti hai gumshuda lamho ke mod se
is jindgi se jaise koi wasta n tha

chehre pe jam gayi thi khyalo ki uljhane
lafzo ki justju me koi bolta n tha

patto ke tutne ki sadaa ghut ke rah gayi
jangal me door-door hawa ka pata n tha

'Rashid' kise sunaate gali me teri ghazal
uske makaan ka koi daricha khula n tha- Mumtaz Rashid

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