ग़ालिब के लतीफे - 4

ग़ालिब के लतीफे

1. जाड़े का मौसम था । तोते का पिंजरा सामने रखा था । सर्द हवा चल रही थी । तोता सर्दी के कारण परों में मुँह छिपाए बैठा था । मिर्ज़ा ने देखा और उनकी अन्दर की जलन बाहर निकली । बोले- "मियाँ मिट्ठू! न तुम्हारे जोरू, न बच्चे । तुम किस फ़िक्र में यों सर झुकाए बैठे हो ? "

2. अब जब पुरखों की सम्पति तो मिर्ज़ा के उदार और खर्चीले स्वभाव के कारण ख़त्म हो चुकी थी । रुपये-पैसे की तंगी तो सदा ही रहने लगी थी । कभी कभी तो ऐसा होता कि पास में एक टका न होता । बच्चे गिडगिडा कर रह जाते लेकिन उन्हें पैसे न मिलते । एक दिन हुसेन अलीखाँ खेलता हुआ इनके पास आया और कहा, "दादा जान! मिठाई लूँगा ।" इन्होने उत्तर दिया, "बेटे, पैसे नहीं हैं ।" वह संदूकची खोलकर पैसे इधर-उधर टटोलने लगा । पर वहाँ क्या था ? इन्होने झट यह शेर कहा :
दिरमो-दाम अपने पास कहाँ !
चील के घोंसले में माँस कहाँ !


3. मशहूर शायर मिर्जा गालिब ने पूछा था कि बर्फी क्या हिन्दू होती है और जलेबी क्या मुसलमान? यह मासूम सा सवाल मशहूर शायर मिर्जा गालिब ने अपने उस मुरीद से पूछा था जो एक हिन्दू थे| उनकी हाजिर जवाबी के लोग कायल थे| बर्फी का तोहफा आने पर उनसे पूछा गया था कि क्या आप हिंदू के यहां से आई बर्फी खा लेगें|
जबान और कलम के धनी मिर्जा गालिब का तपाक से कहा था मुझे पता नहीं था कि बर्फी हिन्दू हो सकती हैं या जलेबी का भी कोई मजहब हो सकता है|

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