मेहर लाल सोनी का जन्म आपके मामा लाला शंकर दास पुरी के घर कपूरथला में सुबह के वक़्त 9 फरवरी 1913 को हुआ, आप अपने पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे | ...

मेहर लाल सोनी का जन्म आपके मामा लाला शंकर दास पुरी के घर कपूरथला में सुबह के वक़्त 9 फरवरी 1913 को हुआ, आप अपने पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे | आपके पिता मुंशी राम सोनी एक सिविल इंजिनियर थे | आपकी पारम्भिक शिक्षा कि शुरुआत (1920-1922) पेशावर के खालसा मिडिल स्कुल से हुई | परन्तु आपने अपनी स्कूली शिक्षा महाराजा हाई स्कुल, जयपुर राजस्थान (1923-1929) से पूरी की | जहा आपने 1933 में B.A. Honors की डिग्री उर्दू में प्राप्त की | और M. A. इंग्लिश में 1935 में फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज, लाहौर के छात्र के रूप में डिग्री प्राप्त की |
आपका उर्दू शायरी का सफ़र आप की माता की निगरानी और मौलवी असग़र अली हया जयपुरी की मदद से सन 1925 में शुरू हुआ था तब आप जयपुर के महाराजा हाई स्कूल के छात्र थे | 'ज़िया' तख़ल्लुस रखने का सुझाव ग़ुलाम कादिर फ़रख अमृतसरी ने 1928 में दिया था | चूंकि आपका परिवार फ़तेहाबाद, पंजाब से था आपने अपना नाम ज़िया फ़तेहाबादी रखा | सन 1930 में आप सीमाब अकबराबादी के शागिर्द बने तब आप लाहौर के फोर्मेन क्रिस्चियन कोलेज के छात्र थे | यहाँ से आपने B. A. (Honors) (Persian) और M.A. (अंग्रेज़ी) की डिग्रियां हासिल कीं | 1936 में आपने रिज़र्व बैंक आफ़ इंडिया की नौकरी शूरू की जहां से 1971 में रिटायर हुए |
आपकी कविताओं का पहला संग्रह " तुल्लू " सन 1934 में साग़र निजामी ने मेरठ से छापा था और 1937 में देहली से प्रकाशित दूसरे संग्रह " नूर ए मशरिक़ " ने आप को उर्दू दुनिया में मशहूर कर दिया | जिसका एक शेर काफी मशहूर हुआ
“वो देख मशरिक से नूर उभरा लिए हुए जलवा-ऐ-हकीकत
मजाज की तर्क कर गुलामी के तू है बंदा-ऐ-हकीकत"
1934 से लेकर 2011 तक शायरी के ग्यारह संग्रह छप चुके हैं | आप का कलाम हर उर्दू अदब को चाहने वाले ने अपने तौर से परखा और सराहा है, फ़िराक गौरखपुरी ने लिखा है "कई मुक़ामात पर मुफ़क्किराना और शायराना अन्दाज़ के इम्तिज़ाज ने मुझे बहुत लुत्फ़ दिया, आपकी शायरी बिलकुल नक्काली या तक़लीद नहीं, इसमें ख़ुलूस है और कहीं रंगीन सादगी है, कहीं सादा और दिलकश रंगीनी, तरन्नुम और रवानी और एक हस्सास सलामतरवी इसकी ख़ास सिफ़तें हैं |" दया नारायण निगम लिखते हैं-"ज़िया के कलाम में लफ़्ज़ों की तरतीब, तरकीबों की चुस्ती, बयान की रवानी वगैरा इस क़दर पुरलुत्फ़ है कि ख्वामख्वा दाद निकलती है |"
आपकी कविताओं से ज़ाहिर होता है कि आप का रुख प्राकृतिक शायरी की तरफ़ रहा, आपकी नज़्मों से एक रचा हुआ ज़ौक आशकार है व गीतों की तरह नज़्मों में भी आपने नर्म हिन्दुस्तानी शब्दों से काम लिया | अब्र अहसनी के मुताबिक़ - "ज़िया मामूली शायर नहीं है, वो हर बात बहुत बुलंदी से कहतें हैं, उनकी ज़ुबान शुस्ता ओ पाकीज़ा और ख़यालात लतीफ़ हैं, दिल में जज़्बा ए इन्सां बेपायाँ है और ऐसा ही शायर मुल्क ओ कौम के लिए बाईस ए फ़ख्र हुआ करता है |"
ज़िया एक पेशेवर शायर नहीं थे | और कई तरह के गुण अपने भीतर समेटे हुए थे आप अर्थव्यवस्था के विकास और बदलाव को काफी अच्छी तरह से विश्लेषित कर सकते थे आप बहुत अच्छे गणितज्ञ थे और उर्दू, अंगेजी एवं संस्कृत भाषा पर आपकी अच्छी पकड़ थी | आप हिंदू ज्योतिष में काफी रूचि रखते थे और इसके अतिरिक्त उपनिषद और ऋग्वेद में भी रूचि रखते थे | और यही सब गुण आपके ज्येष्ठ पुत्र रविंदर कुमार सोनी को विरासत में मिले |
आपका देहांत एक लम्बी बीमारी के बाद जीवन के 74 वें बरस में दिनांक 19 अगस्त 1986 को देहली में हुआ |
आपकी कुछ प्रमुख किताबे जिनमे आपकी शायरी के संग्रह है में तुल्लू सागर निजामी द्वारा 1933 में मेरठ से प्रकाशित, नूर-ए-मशरिक (पूर्व की रौशनी ) 1937 में ज्योति प्रसाद गुप्ता द्वारा दिल्ली से प्रकाशित, नई सुबह (1952) गर्द-ए-राह (1963), हुस्न-ए-ग़ज़ल(1964), धुप और चांदनी (1977), रंग-ओ-नूर (1981), सोच का सफर (1982), नरम गरम हवाए (1987), मेरी तस्वीर (2011)
आपकी गद्य शैली में प्रकाशित किताबो में सूरज डूब गया (1981), मसनद-ए-सदारत से (1985), सीमाब बनाम ज़िया (ज़िया को सीमाब के खत 1981), ज़िया फतेहबदी के खुतूत, मुज़मीन –ए-ज़िया प्रमुख है
आप पर लिखी गयी कुछ किताबो में बुढा दरख्त (1979) ज़िया फतेहाबादी की आत्मकथा डा. ज़रीना सानी के द्वारा लिखी गयी प्रमुख है |
आपका उर्दू शायरी का सफ़र आप की माता की निगरानी और मौलवी असग़र अली हया जयपुरी की मदद से सन 1925 में शुरू हुआ था तब आप जयपुर के महाराजा हाई स्कूल के छात्र थे | 'ज़िया' तख़ल्लुस रखने का सुझाव ग़ुलाम कादिर फ़रख अमृतसरी ने 1928 में दिया था | चूंकि आपका परिवार फ़तेहाबाद, पंजाब से था आपने अपना नाम ज़िया फ़तेहाबादी रखा | सन 1930 में आप सीमाब अकबराबादी के शागिर्द बने तब आप लाहौर के फोर्मेन क्रिस्चियन कोलेज के छात्र थे | यहाँ से आपने B. A. (Honors) (Persian) और M.A. (अंग्रेज़ी) की डिग्रियां हासिल कीं | 1936 में आपने रिज़र्व बैंक आफ़ इंडिया की नौकरी शूरू की जहां से 1971 में रिटायर हुए |
आपकी कविताओं का पहला संग्रह " तुल्लू " सन 1934 में साग़र निजामी ने मेरठ से छापा था और 1937 में देहली से प्रकाशित दूसरे संग्रह " नूर ए मशरिक़ " ने आप को उर्दू दुनिया में मशहूर कर दिया | जिसका एक शेर काफी मशहूर हुआ
“वो देख मशरिक से नूर उभरा लिए हुए जलवा-ऐ-हकीकत
मजाज की तर्क कर गुलामी के तू है बंदा-ऐ-हकीकत"
1934 से लेकर 2011 तक शायरी के ग्यारह संग्रह छप चुके हैं | आप का कलाम हर उर्दू अदब को चाहने वाले ने अपने तौर से परखा और सराहा है, फ़िराक गौरखपुरी ने लिखा है "कई मुक़ामात पर मुफ़क्किराना और शायराना अन्दाज़ के इम्तिज़ाज ने मुझे बहुत लुत्फ़ दिया, आपकी शायरी बिलकुल नक्काली या तक़लीद नहीं, इसमें ख़ुलूस है और कहीं रंगीन सादगी है, कहीं सादा और दिलकश रंगीनी, तरन्नुम और रवानी और एक हस्सास सलामतरवी इसकी ख़ास सिफ़तें हैं |" दया नारायण निगम लिखते हैं-"ज़िया के कलाम में लफ़्ज़ों की तरतीब, तरकीबों की चुस्ती, बयान की रवानी वगैरा इस क़दर पुरलुत्फ़ है कि ख्वामख्वा दाद निकलती है |"
आपकी कविताओं से ज़ाहिर होता है कि आप का रुख प्राकृतिक शायरी की तरफ़ रहा, आपकी नज़्मों से एक रचा हुआ ज़ौक आशकार है व गीतों की तरह नज़्मों में भी आपने नर्म हिन्दुस्तानी शब्दों से काम लिया | अब्र अहसनी के मुताबिक़ - "ज़िया मामूली शायर नहीं है, वो हर बात बहुत बुलंदी से कहतें हैं, उनकी ज़ुबान शुस्ता ओ पाकीज़ा और ख़यालात लतीफ़ हैं, दिल में जज़्बा ए इन्सां बेपायाँ है और ऐसा ही शायर मुल्क ओ कौम के लिए बाईस ए फ़ख्र हुआ करता है |"
ज़िया एक पेशेवर शायर नहीं थे | और कई तरह के गुण अपने भीतर समेटे हुए थे आप अर्थव्यवस्था के विकास और बदलाव को काफी अच्छी तरह से विश्लेषित कर सकते थे आप बहुत अच्छे गणितज्ञ थे और उर्दू, अंगेजी एवं संस्कृत भाषा पर आपकी अच्छी पकड़ थी | आप हिंदू ज्योतिष में काफी रूचि रखते थे और इसके अतिरिक्त उपनिषद और ऋग्वेद में भी रूचि रखते थे | और यही सब गुण आपके ज्येष्ठ पुत्र रविंदर कुमार सोनी को विरासत में मिले |
आपका देहांत एक लम्बी बीमारी के बाद जीवन के 74 वें बरस में दिनांक 19 अगस्त 1986 को देहली में हुआ |
आपकी कुछ प्रमुख किताबे जिनमे आपकी शायरी के संग्रह है में तुल्लू सागर निजामी द्वारा 1933 में मेरठ से प्रकाशित, नूर-ए-मशरिक (पूर्व की रौशनी ) 1937 में ज्योति प्रसाद गुप्ता द्वारा दिल्ली से प्रकाशित, नई सुबह (1952) गर्द-ए-राह (1963), हुस्न-ए-ग़ज़ल(1964), धुप और चांदनी (1977), रंग-ओ-नूर (1981), सोच का सफर (1982), नरम गरम हवाए (1987), मेरी तस्वीर (2011)
आपकी गद्य शैली में प्रकाशित किताबो में सूरज डूब गया (1981), मसनद-ए-सदारत से (1985), सीमाब बनाम ज़िया (ज़िया को सीमाब के खत 1981), ज़िया फतेहबदी के खुतूत, मुज़मीन –ए-ज़िया प्रमुख है
आप पर लिखी गयी कुछ किताबो में बुढा दरख्त (1979) ज़िया फतेहाबादी की आत्मकथा डा. ज़रीना सानी के द्वारा लिखी गयी प्रमुख है |
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