ग़ालिब के लतीफे - 3

ग़ालिब के लतीफे

1. एक बार गालिब के घर कोई उनका प्रशंसक मिलने आया. गालिब साहब अपने शयन कक्ष में सपत्नीक बैठे थे | आगंतुक ने बैठक में बैठे नौकर को अपना विजिटिंग-कार्ड दिया कि गालिब साहब से गुजारिश कीजिये की यह शख्स आपसे मिलने चाहता है, पर फ़िर उस व्यक्ति ने अपना विजिटिंग कार्ड ले कर अपने नाम के आगे बी.ए. जोड़ दिया क्यों कि उस ने कार्ड छपवाने के बाद बी.ए.पास किया था | नौकर आगंतुक का आग्रह देख कर किसी प्रकार गालिब से इजाज़त ले कर अन्दर गया और विजिटिंग-कार्ड दिखाया | थोडी देर बाद नौकर बाहर आया और आगंतुक को उनका कार्ड वापस दे दिया. कार्ड के पीछे गालिब ने एक शेर लिख दिया था-
शेख जी घर से न निकले और यह कहला दिया
आप बी ए पास हैं तो मैं भी बीबी पास हूँ

2. इक बार किसी दूकानदार ने उधार कि गई शराब के दाम वसूल न होने पा मुकदमा चला दिया. मुकदमे कि सुनवाई मुफ्ती सदरुद्दीन कि अदालत में हुई. आरोप सुनाया गया. इनको उज्रदारी में क्या कहना था, शराब तो उधर मंगवाई ही थी, सो कहते क्या? आरोप सुनकर शेर पढ़ दिया :
क़र्ज़ कि पीते थे लेकिन समझते थे कि
हां रंग लायेंगी हमारी फाकामस्ती इक दिन

3. वैसे भी उनकी अल्लाह से पटती कहा थी वे तो शायद कभी नमाज भी नहीं पढ़ते थे. इसी से संबध एक किस्सा है ग़दर के दिनों में ही अंग्रेज सभी मुसलमानों को शक कि निगाह से देखते थे | दिल्ली मुसलमानों से ख़ाली हो गई थी, पर ग़ालिब और कुछ दुसरे लोग चुपचाप अपने घरो में पढ़े रहे. एक दिन कुछ गोरे इन्हें भी पकड़कर कर्नल ब्राउन के पास ले गए | उस वक़्त 'कुलाह' (उची टोपी) इनके सर पर थी. अजीब वेशभूषा थी | कर्नल ने मिर्ज़ा कि यह धज देखी, तो पूछा ' वेल टुम मुसलमान' (well tum musalmaan )' मिर्ज़ा ने कहा- 'आधा'. कर्नल ने पूछा, ' इसका क्या मटलब है ' तो इस पर मिर्ज़ा बोले,'शराब पीता हू, सूअर नहीं खता.' कर्नल सुनकर हसने लगा और इन्हें घर जाने कि इजाजत दे दी |

4. जब रामपुर के नवाब युसूफ अली खां का देहांत हो गया और नए नवाब कल्ब अली खाँ गद्दी पर बेठे, तो मताम्पुर्शी और नए नवाब के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मिर्ज़ा रामपुर गए थे | चंद दिनों बाद नवाब कल्ब अली लेफ्टिनेंट गवर्नर से मिलने बरेली जा रहे थे, रवानगी के वक़्त परंपरा मिर्ज़ा से कहा, 'खुदा के सुपुर्द |' मिर्ज़ा झट बोल उठे ' हजरत! खुदा ने मुझे आपके सुपुर्द किया है, आप फिर उल्टा मुझको खुदा के सुपुर्द करते है |' यह सुनकर बाकी लोग हस पड़े |

5. एक बार चोबदार बादशाही उलुश (प्रसाद) ले कर आया | एक बहार का रहने वाला विद्यार्थी, जो मिर्जा से कुछ पढ़ा करता था, वहा पर मौजूद था | चोबदार के चले जाने के बाद उसने मिर्ज़ा से हैरानगी से पूछा की बेसनी रोटी ऐसी क्या दुर्लभ चीज़ है की बादशाह की तरफ से प्रसाद के रूप में बाटी जाती है | मिर्ज़ा ने कहा, " अरे अहमक चना वह चीज़ है, उसने एक बार खुदा के हुजुर में फ़रियाद की थी की कि दुनिया में मुझ पर बड़े जुल्म होते है, मुझे डालते है,पीसते है, भूनते है पकाते है और मुझ से सैकड़ो चीजे बनाकर खाते है | जैसा मुझ पर जुल्म होता है ऐसा किसी पर नहीं होता | वहा से हुक्म हुआ कि ऐ चने तेरी खैर इसी में है कि हमारे सामने से चला जाए वरना हमारा भी जी चाहता है कि तुझ को खा जाए |

6. शब्दों के संबंध में मिर्ज़ा का एक और किस्सा मशहूर है | दिल्ली में रथ को कुछ लोग स्त्रीलिंग, कुछ पुल्लिंग बोलते है | किसी ने मिर्ज़ा से पूछा,'हजरत, रथ मोअन्नस (स्त्रीलिंग) है या मुज्क्कर (पुल्लिंग)?' वह बोले-भैय्या! जब रथ में औरते बैठी हो, तो मोअन्नस कहो, जब मर्द बैठे हो, तो मुज्क्कर समझो |'

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