कवि निराला की हिन्दी ग़ज़लें - डॉ.ज़ियाउर रहमान जाफरी निराला हिंदी में छायावाद के कवि माने जाते हैं | छायावाद का समय मोटे तौर पर 1918 से 1936 के बीच का..
कवि निराला की हिन्दी ग़ज़लें - डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी
निराला हिंदी में छायावाद के कवि माने जाते हैं | छायावाद का समय मोटे तौर पर 1918 से 1936 के बीच का है | छायावाद के चारों कवियों में छंद पर सबसे ज्यादा अधिकार निराला का था | शायद यही कारण है कि वह राम की शक्ति पूजा और तुलसीदास जैसी रचनाएं लिख सके | उन्हें मुक्त छंद के प्रवर्तक के रूप में भी जान जाता है | अपने छंद प्रयोग के कारण ही निराला ने अपनी कीर्ति बेला में ग़ज़लें भी लिखी | यह गजल भी उस वक्त लिखी गई जब हिंदी में गजल लिखने की कोई वास्तविक परंपरा नहीं थी | निराला से पहले कबीर, जायसी और भारतेंदु आदि की गजलें मिलती है लेकिन भारतेंदु की गजलें उर्दू लबो -लहजे की थी जिसका विषय भी वही परंपरागत प्रेम था |
निराला ने गजल के कथ्य को बदला और उसे प्रेम के संसार और दरबार से घरबार की तरफ लेकर आए | बाद में इसी रूप और तेवर को अख्तियार कर दुष्यंत ने हिंदी गजलें लिखी और गजल सम्राट के रूप में जाने और पहचाने गए | यह भी सच है कि हिंदी गजल को स्थापित करने में दुष्यंत की बड़ी भूमिका है | वह न होते तो हिंदी गजल आज जिस रूप में स्थापित हो गई है वह उस रूप में स्थापित नहीं हो पाती |
निराला की कविताओं की तरह उनका बचपन भी विविधताओं से घिरा रहा है | उत्सव का प्रतीक वसंत में उनका जन्म भले हुआ पर ज़िन्दगी पतझर की तरह अभावों में गुजर गई | जन्म के कुछ समय के बाद मां का देहावसान हो गया | कुछ समय के बाद पिता भी जल्दी गुज़र गये | महामारी के प्रकोप से परिवार के कई सदस्य चल बसे | यहां तक कि पत्नी मनोहरा देवी भी उसका शिकार हो गईं | महिषादल में मालिक से विवाद होने पर उनकी जो छोटी-मोटी नौकरी थी वह भी खत्म हो गई |
साहित्य में जब दिलचस्पी बढ़ी तो उन्होंने 1916 में जूही की कली नाम की पहली कविता लिखी, जिसे उस समय की महत्वपूर्ण पत्रिका सरस्वती ने वापस कर दिया | यह अलग बात है कि निराला की पहचान आगे चलकर यही कविता बनी, जिसे हिंदी की पहली मुक्त छंद कविता के रूप में भी स्वीकारा गया है | अर्थ के दृष्टिकोण से इसमें रीतिकालीन कविता का भले प्रभाव हो, पर इसका प्रस्तुतिकरण बिल्कुल अपना है | समन्वय और मतवाला लिखते हुए एक कवि के रूप में उनकी पहचान बनती चली गई |
छह फुट से अधिक लंबे चौड़े, कुश्ती के जानकार निराला के स्वास्थ्य की दशा की बनती बिगड़ती रही | जिस कारण उन्हें कोलकाता को छोड़कर इलाहाबाद में शरण लेना पड़ा, जहां उन्हें आर्थिक विपन्नता के दिन गुज़ारने पड़े | इस दौरान उन्होंने सुधा पत्रिका में संपादकीय विभाग में नौकरी कर ली, पर उससे इतना कम पैसा मिलता था कि जीवन जीना मुश्किल था | अपनी इकलौती पुत्री का ठीक से इलाज तक न कराने का दुख उनकी कविता सरोज स्मृति में देखा जा सकता है | जिसे हिंदी का पहला शोक काव्य के रूप में भी स्वीकारा जाता है |
निराला छंद और मुक्त छंद दोनों के कवि हैं | गजल लिखते हुए जहां उन्होंने फारसी के प्रचलित बहर का पालन किया है, वहीं कविता को छंद से मुक्ति दिलाने का भी प्रयास करते रहे | उन्होंने परिमल की भूमिका में लिखा है- मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है | मनुष्य की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंद के शासन से अलग हो जाना है |
अन्यत्र मेरे गीत नामक एक निबंध में भी उन्होंने इस बात को दोहराते हुए लिखा है' भावों की मुक्ति छंदों की भी मुक्ति चाहती है | निराला की मुक्त छंद की कविताओं को देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि उनकी कविताओं में तुक का तो आग्रह है पर मात्राओं का बंधन नहीं है |
निराला की कविताओं में कई रंग मिलते हैं जब वह राम की शक्ति पूजा या तुलसीदास लिखते हैं तो उनके कवित्व का पौरुष और ओज झलकता है | पर यही कवि जब कुकुरमुत्ता जैसी कविता लिखते हैं तो उनका लहजा बदल जाता है, यद्यपि इस कविता में भी कवि पूंजीपतियों को शोषक के तौर पर रेखांकित करता है |
निराला की कविताएं हों, कहानियां हों या गजलें वह परंपरागत रूढ़ियों का विरोध करते हैं और सर्वहारा वर्ग के साथ हो जाते हैं |
निराला से पहले भारतेंदु, भगवानदीन, प्रताप नारायण मिश्र, श्रीधर पाठक जयशंकर प्रसाद आदि की गजलें हमें मिलती हैं, पर इन सब ने विद्या के तौर पर हिंदी गजल को स्थापित करने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि शौक या प्रयोग के तौर पर कुछ गजलें लिखी | ज्ञान प्रकाश विवेक की माने तो निराला ने इन सब शायरों के बीच गजल का एक माहौल बनाया | बेला की भूमिका में निराला लिखते हैं- नई बात यह है कि अलग-अलग बहरों की गजलें भी हैं | जिसमें फारसी के छंद शास्त्र का निर्वाह किया गया है | छायावादी कवियों में प्रसाद ने भी गजल शैली की रचना की है लेकिन उन्होंने अपनी किसी कृति को गजल का नाम नहीं दिया | निराला बेला की रचना को गजल घोषित करते हैं उन्होंने अपने गजलों में बकौल डॉ. रामविलास शर्मा उर्दू की बोलचाल का रंग अपनाया है | निराला की एक दो गजलों के कुछ शेर इस संबंध में देखे जा सकते हैं-
किनारा वह हमसे किया जा रहे हैं
दिखाने को दर्शन दिए जा रहे हैं
जुड़े थे सुहागिन के मोती के दाने
वही सूत तोड़े लिए जा रहे हैं
छिपी चोट की बात पूछे तो बोले
निराशा के डोरे सिए जा रहे हैं
जमाने की रफ्तार में कैसा तूफां
मरे जा रहे हैं जिए जा रहे हैं
खुला भेद विजयी कहाये हुए जो
लहू दूसरे का पिए जा रहे हैं
निराला की एक ऐसी ही प्रसिद्ध गजल है जिसमें पूंजी पतियों की खैरियत तलब की गई है -
भेद खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूंजी तुम्हारे मिल में है
हल होंगे हृदय के खुलकर गाने सभी नये
हाथ में आ जाएगा वो राज जो महफ़िल में है
ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बने
सीखा क्या होगी पराई जब सिलाई सिल में है
पूरी उर्दू गजल की रवायत को दरकिनार करते हुए हिंदी की यह पहली गजल है, जिसमें बुर्जुआ वर्ग को चुनौती दी गई है | आगे चलकर विरोध का यही लहजा हिंदी ग़ज़ल का तेवर बन जाता है | निराला की गजलों में एक ऐसा निरलापन है जो ऐसे काफियों को चुनते हैं जिस पर गजल की जमीन मुश्किल से खड़ी होती है | शोले, गोले, तोले, चोले, झोले जैसे रदीफ़ों से गजल लिखना सिर्फ निराला की ही बस की बात थी | जिनके पास शब्दों की विशाल संपदा रही है | देखें गजल के शेर -
आंखों के आंसू ना शोले बन गए तो क्या हुआ
काम के अवसर न गोले बन गए तो क्या हुआ
पेच खाते रह गये गैरों के हाथों आज तक
पेच में डाले ना चोले बन गए तो क्या हुआ
निराला को हिंदी साहित्य का चमकता हुआ नक्षत्र नाम से भी जाना जाता है | अन्याय और शोषण के खिलाफ लिखने वाले छायावाद के वह पहले कवि हैं | भिक्षुक, तोड़ती पत्थर और कुकुरमुत्ता जैसी कविताएं शोषक वर्ग की कलई खोल कर रख देती है | किसान, श्रमिक वर्ग, निम्न वर्ग, मजदूर मेहनतकश समेत तमाम साधनहीन लोगों के वे सर्वप्रिय प्रगतिशील कवि हैं | उनकी कविताओं में इतनी विविधता है कि कई बार यह निष्कर्ष निकलना मुश्किल हो जाता है कि उन्हें किस प्रकार का कवि कहकर पुकारा जाए | हर क्षेत्र में उनकी महानता दिखती है | उन्होंने अपनी कृतियों में इतिहास, धर्म, अध्यात्म प्रकृति, पुराण, सबका गहरा निचोड़ प्रस्तुत किया है | उनमें सिर्फ छायावाद नहीं वेदांतवाद राष्ट्रवाद और रहस्यवाद भी है |
वह जब गजलें लिखते हैं तो समकालीन रिवायत के तहत इसके मिजाजी को अपनाते हैं, लेकिन जल्दी ही उनका ध्यान समाज और देश के हालात पर चला जाता है |
गजल की यह विशेषता भी है कि उनका हर शेर अर्थ के दृष्टिकोण से अलग-अलग होता है | उदाहरण के लिए निराला की यह गजल देखें जो प्रेम में आंखों के इशारे से शुरू होती है लेकिन उसमें प्रकृति, सुगंध, विद्रोह, सियासत सब की परतें खुलने लगते हैं -
बदली जो उनकी आंखें इरादा बदल गया
गुल जैसे चमचमाया के बुलबुल मसल गया
यह टहनी से हवा की छेड़छाड़ थी मगर
खिलकर सुगंध से किसी का दिल बहल गया
खामोश फतह पाने को रोका नहीं रुका
मुश्किल मुकाम जिंदगी का जब सहल गया
मैंने कला की पाटी ली है शेर के लिए
दुनिया के गोलंदाजो को देखा दहल गया
निराला की बहुत सारी ऐसी कविताएं भी हैं जो ग़ज़ल की जमीन पर लिखी गई हैं जैसे यह पंक्तियां-
बाहर में कर दिया गया हूं
भीतर पर भर दिया गया हूं
निराला ने गजलें प्रयोग के तौर पर लिखी थी | उन्होंने गजलें लिखकर एक प्रकार से गजल को हिंदी कविता में लाने का प्रयास किया | निराला के पूर्व के गजलकारों और निराला की गजलों में एक अंतर साफ है कि पंडित निराला की गजलों में हिंदी का जातीय संस्कार झलकता है कुछ शेर देखें -
बातें चली सारी रात तुम्हारी
आंखें नहीं खुली प्रात तुम्हारी
तितलियां नाचती उड़ाती रंगों से मुग्ध कर करके
प्रसूनों पर लदकर बैठती है मन लुभाया है
तुम्हें देखा तुम्हारे स्नेह के नयन देखे
देखी सलीला नलिनी के सलिल शयन देखे
निराला गजल का अध्ययन करने वाले सरदार मुजावर मानते हैं कि उन्होंने आपनी गजलों की रचना विभिन्न छंदों में की है, जैसे उनकी यह प्रसिद्ध गजल बहरे हजज सालिम में है -
चढ़ी है आंख जहां की उतार लाएंगी
बढ़े हुए को गिरकर संवार लाएंगी
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि निराला की हिंदी गजलें इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं कि उनसे पूर्व गजलों की कोई विकसित परंपरा नहीं थी | बावजूद उसके उन्होंने हिंदी में गजल लिखने की समृद्ध परंपरा का निर्वाह किया | इन गजलों में हिंदी के शब्द लाए गए और इस धारणा को समाप्त किया गया की हिंदी भाषा में अच्छी ग़ज़लें नहीं लिखी जा सकती |
आज हिंदी गजल हिंदी कविता की मुख्य धारा में शामिल हो गई है | इससे छंद की वापसी तो हुई ही है, इसने पाठकों को एक बार फिर कविता से जोड़ने का कार्य किया है | आज हिंदी गजल के कई नाम ऐसे हैं जिन्होंने अपनी साधना से इसे एक विधा के तौर पर स्थापित कर दिया है | हरे राम समीप, अनिरुद्ध सिंहा, डॉ. भावना, विज्ञान व्रत विनय मिश्र, ज्ञान प्रकाश विवेक, कमलेश भट्ट कमल आदि समकालीन हिंदी गजल के प्रतिनिधि गजलकार हैं | युवा गजलकारों में भी केपी अनमोल, रामनाथ बेखबर, ए एफ नज़र, दिलीप दर्श, अविनाश भारती, विकास, राहुल शिवाय, अभिषेक कुमार सिंह आदि की गजलें हमें मुतमइन करती हैं |
निराला ने गजल के कथ्य को बदला और उसे प्रेम के संसार और दरबार से घरबार की तरफ लेकर आए | बाद में इसी रूप और तेवर को अख्तियार कर दुष्यंत ने हिंदी गजलें लिखी और गजल सम्राट के रूप में जाने और पहचाने गए | यह भी सच है कि हिंदी गजल को स्थापित करने में दुष्यंत की बड़ी भूमिका है | वह न होते तो हिंदी गजल आज जिस रूप में स्थापित हो गई है वह उस रूप में स्थापित नहीं हो पाती |
निराला की कविताओं की तरह उनका बचपन भी विविधताओं से घिरा रहा है | उत्सव का प्रतीक वसंत में उनका जन्म भले हुआ पर ज़िन्दगी पतझर की तरह अभावों में गुजर गई | जन्म के कुछ समय के बाद मां का देहावसान हो गया | कुछ समय के बाद पिता भी जल्दी गुज़र गये | महामारी के प्रकोप से परिवार के कई सदस्य चल बसे | यहां तक कि पत्नी मनोहरा देवी भी उसका शिकार हो गईं | महिषादल में मालिक से विवाद होने पर उनकी जो छोटी-मोटी नौकरी थी वह भी खत्म हो गई |
साहित्य में जब दिलचस्पी बढ़ी तो उन्होंने 1916 में जूही की कली नाम की पहली कविता लिखी, जिसे उस समय की महत्वपूर्ण पत्रिका सरस्वती ने वापस कर दिया | यह अलग बात है कि निराला की पहचान आगे चलकर यही कविता बनी, जिसे हिंदी की पहली मुक्त छंद कविता के रूप में भी स्वीकारा गया है | अर्थ के दृष्टिकोण से इसमें रीतिकालीन कविता का भले प्रभाव हो, पर इसका प्रस्तुतिकरण बिल्कुल अपना है | समन्वय और मतवाला लिखते हुए एक कवि के रूप में उनकी पहचान बनती चली गई |
छह फुट से अधिक लंबे चौड़े, कुश्ती के जानकार निराला के स्वास्थ्य की दशा की बनती बिगड़ती रही | जिस कारण उन्हें कोलकाता को छोड़कर इलाहाबाद में शरण लेना पड़ा, जहां उन्हें आर्थिक विपन्नता के दिन गुज़ारने पड़े | इस दौरान उन्होंने सुधा पत्रिका में संपादकीय विभाग में नौकरी कर ली, पर उससे इतना कम पैसा मिलता था कि जीवन जीना मुश्किल था | अपनी इकलौती पुत्री का ठीक से इलाज तक न कराने का दुख उनकी कविता सरोज स्मृति में देखा जा सकता है | जिसे हिंदी का पहला शोक काव्य के रूप में भी स्वीकारा जाता है |
निराला छंद और मुक्त छंद दोनों के कवि हैं | गजल लिखते हुए जहां उन्होंने फारसी के प्रचलित बहर का पालन किया है, वहीं कविता को छंद से मुक्ति दिलाने का भी प्रयास करते रहे | उन्होंने परिमल की भूमिका में लिखा है- मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है | मनुष्य की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंद के शासन से अलग हो जाना है |
अन्यत्र मेरे गीत नामक एक निबंध में भी उन्होंने इस बात को दोहराते हुए लिखा है' भावों की मुक्ति छंदों की भी मुक्ति चाहती है | निराला की मुक्त छंद की कविताओं को देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि उनकी कविताओं में तुक का तो आग्रह है पर मात्राओं का बंधन नहीं है |
निराला की कविताओं में कई रंग मिलते हैं जब वह राम की शक्ति पूजा या तुलसीदास लिखते हैं तो उनके कवित्व का पौरुष और ओज झलकता है | पर यही कवि जब कुकुरमुत्ता जैसी कविता लिखते हैं तो उनका लहजा बदल जाता है, यद्यपि इस कविता में भी कवि पूंजीपतियों को शोषक के तौर पर रेखांकित करता है |
निराला की कविताएं हों, कहानियां हों या गजलें वह परंपरागत रूढ़ियों का विरोध करते हैं और सर्वहारा वर्ग के साथ हो जाते हैं |
निराला से पहले भारतेंदु, भगवानदीन, प्रताप नारायण मिश्र, श्रीधर पाठक जयशंकर प्रसाद आदि की गजलें हमें मिलती हैं, पर इन सब ने विद्या के तौर पर हिंदी गजल को स्थापित करने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि शौक या प्रयोग के तौर पर कुछ गजलें लिखी | ज्ञान प्रकाश विवेक की माने तो निराला ने इन सब शायरों के बीच गजल का एक माहौल बनाया | बेला की भूमिका में निराला लिखते हैं- नई बात यह है कि अलग-अलग बहरों की गजलें भी हैं | जिसमें फारसी के छंद शास्त्र का निर्वाह किया गया है | छायावादी कवियों में प्रसाद ने भी गजल शैली की रचना की है लेकिन उन्होंने अपनी किसी कृति को गजल का नाम नहीं दिया | निराला बेला की रचना को गजल घोषित करते हैं उन्होंने अपने गजलों में बकौल डॉ. रामविलास शर्मा उर्दू की बोलचाल का रंग अपनाया है | निराला की एक दो गजलों के कुछ शेर इस संबंध में देखे जा सकते हैं-
किनारा वह हमसे किया जा रहे हैं
दिखाने को दर्शन दिए जा रहे हैं
जुड़े थे सुहागिन के मोती के दाने
वही सूत तोड़े लिए जा रहे हैं
छिपी चोट की बात पूछे तो बोले
निराशा के डोरे सिए जा रहे हैं
जमाने की रफ्तार में कैसा तूफां
मरे जा रहे हैं जिए जा रहे हैं
खुला भेद विजयी कहाये हुए जो
लहू दूसरे का पिए जा रहे हैं
निराला की एक ऐसी ही प्रसिद्ध गजल है जिसमें पूंजी पतियों की खैरियत तलब की गई है -
भेद खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूंजी तुम्हारे मिल में है
हल होंगे हृदय के खुलकर गाने सभी नये
हाथ में आ जाएगा वो राज जो महफ़िल में है
ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बने
सीखा क्या होगी पराई जब सिलाई सिल में है
पूरी उर्दू गजल की रवायत को दरकिनार करते हुए हिंदी की यह पहली गजल है, जिसमें बुर्जुआ वर्ग को चुनौती दी गई है | आगे चलकर विरोध का यही लहजा हिंदी ग़ज़ल का तेवर बन जाता है | निराला की गजलों में एक ऐसा निरलापन है जो ऐसे काफियों को चुनते हैं जिस पर गजल की जमीन मुश्किल से खड़ी होती है | शोले, गोले, तोले, चोले, झोले जैसे रदीफ़ों से गजल लिखना सिर्फ निराला की ही बस की बात थी | जिनके पास शब्दों की विशाल संपदा रही है | देखें गजल के शेर -
आंखों के आंसू ना शोले बन गए तो क्या हुआ
काम के अवसर न गोले बन गए तो क्या हुआ
पेच खाते रह गये गैरों के हाथों आज तक
पेच में डाले ना चोले बन गए तो क्या हुआ
निराला को हिंदी साहित्य का चमकता हुआ नक्षत्र नाम से भी जाना जाता है | अन्याय और शोषण के खिलाफ लिखने वाले छायावाद के वह पहले कवि हैं | भिक्षुक, तोड़ती पत्थर और कुकुरमुत्ता जैसी कविताएं शोषक वर्ग की कलई खोल कर रख देती है | किसान, श्रमिक वर्ग, निम्न वर्ग, मजदूर मेहनतकश समेत तमाम साधनहीन लोगों के वे सर्वप्रिय प्रगतिशील कवि हैं | उनकी कविताओं में इतनी विविधता है कि कई बार यह निष्कर्ष निकलना मुश्किल हो जाता है कि उन्हें किस प्रकार का कवि कहकर पुकारा जाए | हर क्षेत्र में उनकी महानता दिखती है | उन्होंने अपनी कृतियों में इतिहास, धर्म, अध्यात्म प्रकृति, पुराण, सबका गहरा निचोड़ प्रस्तुत किया है | उनमें सिर्फ छायावाद नहीं वेदांतवाद राष्ट्रवाद और रहस्यवाद भी है |
वह जब गजलें लिखते हैं तो समकालीन रिवायत के तहत इसके मिजाजी को अपनाते हैं, लेकिन जल्दी ही उनका ध्यान समाज और देश के हालात पर चला जाता है |
गजल की यह विशेषता भी है कि उनका हर शेर अर्थ के दृष्टिकोण से अलग-अलग होता है | उदाहरण के लिए निराला की यह गजल देखें जो प्रेम में आंखों के इशारे से शुरू होती है लेकिन उसमें प्रकृति, सुगंध, विद्रोह, सियासत सब की परतें खुलने लगते हैं -
बदली जो उनकी आंखें इरादा बदल गया
गुल जैसे चमचमाया के बुलबुल मसल गया
यह टहनी से हवा की छेड़छाड़ थी मगर
खिलकर सुगंध से किसी का दिल बहल गया
खामोश फतह पाने को रोका नहीं रुका
मुश्किल मुकाम जिंदगी का जब सहल गया
मैंने कला की पाटी ली है शेर के लिए
दुनिया के गोलंदाजो को देखा दहल गया
निराला की बहुत सारी ऐसी कविताएं भी हैं जो ग़ज़ल की जमीन पर लिखी गई हैं जैसे यह पंक्तियां-
बाहर में कर दिया गया हूं
भीतर पर भर दिया गया हूं
निराला ने गजलें प्रयोग के तौर पर लिखी थी | उन्होंने गजलें लिखकर एक प्रकार से गजल को हिंदी कविता में लाने का प्रयास किया | निराला के पूर्व के गजलकारों और निराला की गजलों में एक अंतर साफ है कि पंडित निराला की गजलों में हिंदी का जातीय संस्कार झलकता है कुछ शेर देखें -
बातें चली सारी रात तुम्हारी
आंखें नहीं खुली प्रात तुम्हारी
तितलियां नाचती उड़ाती रंगों से मुग्ध कर करके
प्रसूनों पर लदकर बैठती है मन लुभाया है
तुम्हें देखा तुम्हारे स्नेह के नयन देखे
देखी सलीला नलिनी के सलिल शयन देखे
निराला गजल का अध्ययन करने वाले सरदार मुजावर मानते हैं कि उन्होंने आपनी गजलों की रचना विभिन्न छंदों में की है, जैसे उनकी यह प्रसिद्ध गजल बहरे हजज सालिम में है -
चढ़ी है आंख जहां की उतार लाएंगी
बढ़े हुए को गिरकर संवार लाएंगी
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि निराला की हिंदी गजलें इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं कि उनसे पूर्व गजलों की कोई विकसित परंपरा नहीं थी | बावजूद उसके उन्होंने हिंदी में गजल लिखने की समृद्ध परंपरा का निर्वाह किया | इन गजलों में हिंदी के शब्द लाए गए और इस धारणा को समाप्त किया गया की हिंदी भाषा में अच्छी ग़ज़लें नहीं लिखी जा सकती |
आज हिंदी गजल हिंदी कविता की मुख्य धारा में शामिल हो गई है | इससे छंद की वापसी तो हुई ही है, इसने पाठकों को एक बार फिर कविता से जोड़ने का कार्य किया है | आज हिंदी गजल के कई नाम ऐसे हैं जिन्होंने अपनी साधना से इसे एक विधा के तौर पर स्थापित कर दिया है | हरे राम समीप, अनिरुद्ध सिंहा, डॉ. भावना, विज्ञान व्रत विनय मिश्र, ज्ञान प्रकाश विवेक, कमलेश भट्ट कमल आदि समकालीन हिंदी गजल के प्रतिनिधि गजलकार हैं | युवा गजलकारों में भी केपी अनमोल, रामनाथ बेखबर, ए एफ नज़र, दिलीप दर्श, अविनाश भारती, विकास, राहुल शिवाय, अभिषेक कुमार सिंह आदि की गजलें हमें मुतमइन करती हैं |
डॉ.ज़ियाउर रहमान जाफरी
ग्राम -पोस्ट -माफ़ी
वाया - अस्थावां
ज़िला - नालंदा,बिहार 803107
9934847941, 6205200000
ग्राम -पोस्ट -माफ़ी
वाया - अस्थावां
ज़िला - नालंदा,बिहार 803107
9934847941, 6205200000
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