तुम्हीं से ज़िया है - यानी जिंदगी के फलसफे की शायरी

तुम्हीं से ज़िया है - सुभाष पाठक ज़िया | पुस्तक समीक्षा

तुम्हीं से ज़िया है - यानी जिंदगी के फलसफे की शायरी

पुस्तक: 'तुम्हीं से ज़िया है' (ग़ज़ल संग्रह)
ग़ज़लकर: सुभाष पाठक 'ज़िया'
समीक्षक : डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी


समकालीन हिंदी ग़ज़ल में जिन लोगों ने अपनी शनाख़्त तेजी से बनाई है, उसमें एक नाम सुभाष पाठक ज़िया का भी है | वह जितने संजीदा शख्स हैं, उनकी शायरी में भी उतनी ही संजीदगी मौजूद है | इसलिए लोगों को वो शेर भी पसंद आता है और उनकी शायरी भी | उनकी बातों और गजलों दोनों में मिठास है |

गजल भी एक प्रकार की बात है, पर यह बात किसी चायखाने या मयखाने से न निकल कर इंसान की रोज-बरोज की जरूरतों, संघर्षों और आशंकाओं से मिलकर हमारे सामने आती है | ज़िया की अधिकता शायरी उनकी फीलिंग है | उनका नजरिया या उनके विचार हैं, पर यह अनुभूति जब शायरी का जामा पहनती है तो सिर्फ उनकी बात न होकर जमाने की बात बन जाती है |

ज़िया को गजल की ख़ामोश मिजाजी बहुत पसंद आती है | असल में गजल इशारों की भाषा है | गजल में शब्द-शब्द बनकर नहीं जादू बनाकर हमारे सामने आते हैं | एक मुकम्मल शायर इसी जादूगरी से अपनी रचनात्मकता का दीवाना सामाजिकों को बना देता है |

तुम्हीं से ज़िया है पुस्तक का यह नाम भी कम रोचक और प्रतीकात्मक नहीं है | इसमें लेखक अपने वजूद का भी एहसास दिलाता है और गहन अंधकार के बाद की रोशनी का भी | रोशनी छायावादी कविता में आशा का प्रतीक रहा है | यह ज़िया भी आलोक स्तंभ की तरह क़ायम दायम और रोशन है |

"तुम्हीं से ज़िया है" संग्रह की गजलें धूप से शुरू होकर विरानी पर समाप्त होती है | इस दीवान में एक और बात जो अचंभित करती है वह छोटी बहर की गजलों का ज्यादा प्रभावित करना है | आमतौर पर छोटी बहर की गजलों में वह ख्याल नहीं आ पाता, गजल जिसके लिए जानी पहचानी और सराही जाती है | ज़िया को इसकी महारत हासिल है | उसकी वजह है कि उन्होंने हर शेर पर मेहनत की है |

हिंदी ग़ज़ल जितनी जोर- शोर से लिखी जा रही है | उस अनुपात में वह मुतासिर नहीं कर पा रही है | ज्यादातर गजलों में सिर्फ काफ़िया और रदीफ़ फिट किया जा रहा है | गजल का व्याकरण सिर्फ उसका ढांचा है उसकी गज़लीयत उसके मौजूद विचारों और प्रस्तुतीकरण से हमारे सामने आती है | इस संकलन की पहली ही गजल है-

धूप ढल जाती है घटाओ में
ये असर होता है दुआओं में

पत्थरों को भी मोम कर देंगी
इतनी तासीर है वफाओं में

उसको महसूस कर रहा है दिल
फूल तितली शजर हवाओं में

इस पूरी ग़ज़ल का जो लहजा और मुहावरा है वह हमें देर तक प्रभावित करता है | ज़िया की गजलों की भाषा भी बेहद मिठास लिए हुए है | यह अलग बात है कि उनके ज्यादातर शब्द उर्दू- फारसी के हैं, पर यह ऐसे शब्द हैं जो हमारी रोजमर्रा की भाषा में घुल-मिल गये हैं-

आज तितली ने कह दिया खुल के
उसको नखरे पसंद हैं गुल के

तो यह शब्द या कथ्य हमारी समझ से बाहर के नहीं होते | ज़िया की अधिकांश गजलों में जिंदगी का फलसफा है | उनके सृजन में जिंदगी और जिंदगी की तल्ख़ हकीकत का बार-बार जायजा लिया गया है | जैसे नज़ीर को चांद, परवीन शाकिर को खुशबू, नासिर काज़मी को विरानी बशीर बद्र को मोहब्बत और मुनव्वर राना को मां लफ़्ज़ से प्यार है, ठीक है वैसे ही जिंदगी शब्द ज़िया की शायरी में बार-बार रिपीट दोहराता है | उन्हें पता है कि जब तक जिंदगी है तभी तक शायरी है, तभी मोहब्बत है, खुशबू है, रंग है, रूप है, तितली है, बादल है, पर्वत है, नदियां, झरने, फूल, खुशबू या प्यार मोहब्बत और वफ़ा है |

ज़िया ने इस संकलन में कुछ प्रयोग भी किए हैं | ध्वनि साम्यता न होने के बावजूद उन्होंने झटका, चौखट का, भटका जैसी रदीफ़ का इस्तेमाल भी बड़ी चतुराई से किया है |

उनकी ग़ज़ल की एक विशेषता यह भी है कि कई बार वह अपने शेरों में बिना किसी बिंब, प्रतीक और व्यंजना के अपनी बात साफ तरीके से रख देते हैं, जैसे उनका यह शेर -
मिलाना चाहते हैं हाथ हिंदू और मुस्लिम पर
सियासत है कि उनको पास भी आने नहीं देती

शायर मुनव्वर राना इसी चीज को अपने अंदाज में कहते हैं पर ज़िया की तरह सीधा और तल्ख़ आक्रमण करने से परहेज करते हैं -
मोहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है

यह शायर बार-बार जिंदगी की हकीकत को समझता है, और हमें हर खतरे से आगाह करता है -
ग़ैर से करना गिला क्या देर तक
साथ देता है न साया देर तक

इस तरह गजल जो हमें कल तक सिर्फ लुत्फ-अंदोज़ करती थी, आज वह हमारी सहगामनी, और गाइड बनकर सामने खड़ी है | यह अलग बात है कि शायर यहां भी एक दायरा रखना नहीं भूलता-

जिंदगी तुमसे खुल न पाए हम
एहतियातन ही मुस्कुराए हम

कहना ना होगा कि उनके पास अनुभवों की विशाल संपदा है | शायरी की बिखरी हुई जुल्फों को समेटने की सलाहियत है | जिंदगी की उतार-चढ़ाव का अनुभव है | एक साहित्यकार की पीड़ा है | जीवन की वास्तविकता का ज्ञान है | उनके अशआर में एक मानवीय आवेग है | एक भावुक कवि की तरह उनकी लेखनी में समाज, प्रेम और पर्यावरण की चिंता है | यह वह बड़ा शायर है जो हर छोटे की फिक्र करता है-
समंदर के किनारे पर रहा हूं
मगर मैं इस नदी को सोचता हूँ

समकालीन हिंदी गजल को ज़िया से काफी उम्मीदें हैं, क्योंकि गजल उनके पास रहकर अपने आप को ज्यादा महफूज महसूस करती है |

पुस्तक का नाम - तुम्हीं से ज़िया है (ग़ज़ल संग्रह)
प्रकाशक - अभिधा प्रकाशन
मुजफ्फरपुर बिहार
वर्ष 2023
मूल्य - 300/-
पृष्ठ - 142

- डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी
पत्राचार -
ग्राम : पोस्ट माफ़ी, वाया -अस्थावां, ज़िला - नालंदा, बिहार - 803107
9934847941

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