समकालीन हिंदी ग़ज़ल का नाम लेते ही जो कुछ चेहरे अकस्मात हमारे जेहन में आते हैं, उनमें एक नाम ओमप्रकाश यती का भी है | परंपरा से हटकर उन्होंने ग़ज़ल में....
ओमप्रकाश यती की किताब- 'रास्ता मिल जाएगा' (समीक्षा)
ग़ज़ल लेखन में एक नए रास्ते की तलाश - डॉ. जियाउर रहमान जाफरी
समकालीन हिंदी ग़ज़ल का नाम लेते ही जो कुछ चेहरे अकस्मात हमारे जेहन में आते हैं, उनमें एक नाम ओमप्रकाश यती का भी है | परंपरा से हटकर उन्होंने ग़ज़ल में कुछ नया कहने की कोशिश की है | अज्ञेय के शब्दों में कहें तो यह कोशिश लीक से हटकर कहने की है | आज जो ग़ज़लें लिखी जा रही हैं उसमें अधिकतर ग़ज़लें हल्की-फुल्की और जल्दबाजी में लिखी हुई है | उसमें तग़ज्जुल की कमी है और वह सपाट बयानी का शिकार होती जा रही है | ग़ज़ल में लेखक जितनी ऊर्जा वर्णों और मात्राओं को गिनने और उसे उठाने -गिराने में कर रहे हैं | उतना ध्यान ग़ज़ल की ग़ज़लीयत पर नहीं दे पा रहे हैं |ग़ज़ल सिर्फ मतला मक़ता को फिट कर देने का नाम नहीं है बल्कि दो पंक्ति के एक शेर में पूरी कायनात को समेट लेने का नाम है | असल में ग़ज़ल में प्रभाव का आना लेखक के अनुभव और अभ्यास पर निर्भर करता है | लेकिन हिंदी के ग़ज़लकार जितनी ग़ज़लें लिख रहे हैं उतने दूसरे ग़ज़लकारों को पढ़ नहीं रहे | ऐसा नहीं है कि यह स्थिति सबके साथ है ऐसे भी ग़ज़लकार मौजूद हैं जिनका अध्ययन भी है और ग़ज़ल में कुछ नया प्रयोग करने का उत्साह और ऊर्जा भी है |
ओमप्रकाश यती ऐसे ही जाने-माने ग़ज़लकार हैं | उनके पास ग़ज़ल की शैली है, लबो लहजा है, ग़ज़ल का मुहावरा है, भाषागत सौंदर्य है और अपने प्राप्त किए हुए अनुभवों को प्रस्तुत करने का तौर तरीका और सुलझा हुआ सलीका है | उनके अशआर में रोजमर्रा की बातें हैं उनके प्रतीक और शब्द जाने पहचाने हैं ऐसा इसलिए कि उन्हें पता है कि हिंदी की ग़ज़ल राजदरबारी नहीं है न वो किसी हरम की जीनत का हिस्सा ही है | बल्कि यह हमारी जरूरत है | हिंदी ग़ज़ल में हमेशा व्यवस्था की खामियों को दिखाया गया है और इस विकृति पर मज़बूत प्रहार किया गया है | इस संग्रह के हर शेर में इसकी प्रतिध्वनि सुनी जा सकती है कुछ शेर देखें-
आंकड़े देते हैं तस्वीर हमें दुनिया की
हर तरक्की सुनी उसकी ही जुबानी हमने
शहर में तो हो रही कुछ तरक्की रोज-रोज
पर हमारा गांव अब तक है वहीं ठहरा हुआ
हम दीप मोहब्बत के जलाना नहीं छोड़े
यह सच है कि नफरत की बहुत तेज हवा है ( पृष्ठ-20)
उसे तो बात पर अपनी अरे रहने की आदत है
कभी अपनी किसी गलती को गलती कह नहीं सकता ( पृष्ठ22)
यती अपनी ग़ज़लों में पौराणिक प्रतीकों को भी आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं | इस संग्रह में उनकी पहली ग़ज़ल वाकई सबसे खूबसूरत ग़ज़ल है. उसी ग़ज़ल के एक -दो शेर मुलाहिज़ा हों -
अगर वो इस तरह फिरका परस्ती को हवा देंगे
तो तय है एक दिन इंसानियत को ही मिटा देंगे
ग़ज़ल में रंग अपना हो कहन में कुछ नयापन हो
बहुत मुश्किल है कहना भाव हम बिल्कुल नया देंगे
ना आशा द्रोण को है एकलव्यों से अंगूठों की
अगर मांगे भी तो क्या शिष्य ऐसी दक्षिणा देंगे
आमतौर पर यह ग़ज़ल के सब शेर इतने अच्छे नहीं होते लेकिन ओमप्रकाश यती जल्दबाजी में कुछ कह-लिख देने वाले शायर नहीं हैं | उन्हें पता है कि हर एक शेर काफी मेहनत से किसी कैनवास पर उतरता है | अरब में एक मुहावरा है कि जिसे सौ शेर याद हो वही एक शेर लिख कर देखे | हमारे यहां बालस्वरूप राही एक दो शेर लिखने में ही गम के पर्वत टूटने की बात करते हैं |
खड़ी बोली हिंदी के एक वर्ष से अधिक के इतिहास में हिंदी की कई काव्यधारा विकसित हुईं लेकिन उसमें ग़ज़ल, दोहे के बाद सबसे ज्यादा पाठकों के करीब रही | इसकी वजह ग़ज़ल का कहन कथन मनन और लगन है | ओमप्रकाश यती भी अपनी ग़ज़लों में कहने का नया सलीका तलाश करते हैं | इस संग्रह में उनके कुछ शेर देखे जा सकते हैं-
कितनी आफत के बाद समझोगे
क्या कयामत के बाद समझोगे
सच्ची बात बता दो उनको
जिन से आंख चुराते हो तुम
उसके चेहरे को पढ़ के देखा तो
ख़ामुशी एक बयान लगती है
यती की ग़ज़लें इस बात का भरोसा दिलाती हैं कि अगर आप ठान ले तो जिंदगी में कुछ भी नामुमकिन नहीं है | जैसे कभी रसीद निसार ने कहा था-
मैं कर्बला की लहू से गुजर के आया हूं
फिर माहो -साल से मिटते नहीं निशान मेरे
ठीक है वैसे ही यती भी कहते हैं-
घुप अंधेरे में भी कोई रोशनी मिल जाएगी
आप चाहेंगे अगर तो जिंदगी मिल जाएगी
लेकिन हालात ऐसे बदतर हैं कि यह हिम्मत बढ़ाने वाला शायर भी आज की व्यवस्था से चरमरा कर रह जाता है और कह उठता है-
जब इतनी दूरी होगी तो बच पाएंगे रिश्ते भी नहीं
आशावादी हम हैं लेकिन हालात बहुत अच्छे भी नहीं
और फिर इस दूरी की वजह भी वह अगले ही शेर में बता देते हैं -
हम अपने सुख-दुख बाटेंगे ऐ दोस्त कहां यह मुमकिन है
जब एक ही शहर में रहते हैं और अरसे तक मिलते भी नहीं
हिंदी के कई कवि ऐसे हैं जिनके कुछ शब्द प्रिय रहे हैं, नजीर बार-बार चांद शब्द का इस्तेमाल करते हैं. परवीन शाकिर की शायरी में खुशबू लफ्ज़ बार-बार आता है, बशीर मोहब्बत शब्द को अपने सुखन में बार-बार रिपीट करते हैं, ठीक है ऐसे ही ओमप्रकाश यती को भी मंजिल, ख्वाब, और रिश्ते शब्द बहुत प्यारे हैं | कुछ शेर आप भी देखें-
जिसने हमारी राह में कांटे बिछा दिए
हमने उसके साथ भी रिश्ते बिछा दिए
चाह है मंजिल पर जाने की अगर
एक दिन मिल जाएंगे रस्ता कोई
हिंदी ग़ज़ल में यती का जो यह सकारात्मक नजरिया है यह पूरी ग़ज़ल परंपरा में जिगर जालंधरी, रहमान राही और हफ़ीज़ मेरठी के अलावा कहीं दिखाई नहीं देता |
तुलनात्मक दृष्टिकोण से भी देखें तो उनके शेर हमें औरों की अपेक्षा अधिक प्रभावित करते हैं | जैसे प्रकृति हर शायरों की अपनी प्रेयसी रही है | यह उनके साथ पली और बढ़ी है | कुछ शेर देखे जा सकते हैं-
मैं उसे ढूंढता था आंखों में
फूल बनकर वो शाख पर निकला - बशीर बद्र
रंग पेड़ों का क्या हुआ देखो
कोई पत्ता नहीं हरा देखो - मखमूर सईदी
ये सूखी शाख कहां तक भला हिलाऊँ मैं
कहो तो फिर उसी दुनिया में लौट आऊं मैं
लेकिन जब यती प्रकृति की बात करते हैं तो वह कोई रीतिकालीन कवियों का बारहमासा नहीं लिखते और ना ही प्रयोगवादी कवियों की तरह उनका उपभोग करते हैं, बल्कि प्रकृति के साथ घुल-मिलकर उनसे सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं कुछ शेर मुलाहिजा हो-
वहां शहर में रह न पाया मैं ज्यादा
मुझे खेत खलिहान ही भा रहे हैं
देते रहे छाया सबको
धूप शजर तो खुद सहते हैं
मिट्टी उसे इस योग्य बनाती है जतन से
ऐसे ही नहीं बीज से पौधा निकल आता
यती की ग़ज़लें सबसे पहले और सबसे आखिर में सामाजिक चेतना में आई गिरावट के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करती हैं, उनकी ग़ज़लों में विद्रोह है लेकिन आक्रमकता या तल्खी नहीं है | चेतावनी के स्वर हैं लेकिन तोड़फोड़ नहीं है | वह अपनी हर बात मिठास के साथ कहने के आदी हैं, और ग़ज़ल उसी मिठास को पसंद करती है जो किसी प्रेयसी के मुंह से निकली हुई है | ओमप्रकाश यती की सबसे बड़ी विशेषता है कि तमाम तरह के असंतोष, विडंबना, खाई नफरत और विद्वेष के बावजूद भी वह गांव देश और समय को बचाए रखते हैं | तभी तो वह कहते हैं-
पीछे किसी हुजूम के तुम मत बढ़ा करो
मंजिल तुम्हारी कौन सी है फैसला करो
लेकिन उस मंजिल को पाने के लिए वह गलत रास्ता नहीं बनाते जो रास्ता अब्दुल बिस्मिल्लाह के लघु उपन्यास अपवित्र आख्यान की यासमीन बनाती है |
शिल्प, संरचना, भाषाई खूबसूरती, सौंदर्य, तथा कसावट की दृष्टि से भी उनकी ग़ज़लें मजबूती से खड़ी मिलती हैं | उन्होंने अपने कई शेरों में ग़ज़ल के गिरते हुए स्तर का भी जिक्र और फिक्र किया है, और उसकी संरचना तथा विषय वस्तु का भी-
मुझे तो ऐसा लगा उनमें जिंदगी कम थी
तमाम नारे थे ग़ज़लों में शायरी कम थी
इसलिए समकालीन हिन्दी ग़ज़ल में जब कभी शायरी के फन से गुज़रते हुए शायर की तलाश की जाएगी ओमप्रकाश यती वहीं उसके सिरहाने खड़े मिलेंगे | वह यकीनन हमारे दौर में ग़ज़ल में नया कहने और गढ़ने वाले प्रतिनिधि और अलाहिदा शायर हैं, जिनसे हिन्दी ग़ज़ल को काफ़ी उम्मीदें वाबस्ता हैं |
ग़ज़ल संग्रह : रास्ता मिल जायेगा
लेखक : ओमप्रकाश यती
पृष्ठ -103
मूल्य -200/-
प्रकाशन वर्ष -2022
प्रकाशकः श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली
डॉ. जियाउर रहमान जाफरी
सहायक प्रोफेसर
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
मिर्जा गालिब कॉलेज,
गया, बिहार
9934847941
सहायक प्रोफेसर
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
मिर्जा गालिब कॉलेज,
गया, बिहार
9934847941
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