उम्मीद का मौसम : रामचरण राग ग़ज़ल संग्रह समीक्षा

उम्मीद का मौसम : रामचरण राग ग़ज़ल संग्रह समीक्षा

रामचरण राग हिंदी के बाज़ाब्ता शायर हैं | हिंदी ग़ज़ल की नई पीढ़ी में जिन लोगों ने अपनी महत्वपूर्ण शनाख़्त दर्ज की है उसमें एक नाम रामचरण राग का भी है | उनकी सबसे बड़ी विशेषता ग़ज़ल के प्रति उनका पूरा समर्पण और पूरी निष्ठा है | वह ऐसे लेखक हैं जो आलोचकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं | उन्हें तारीफ प्रिय नहीं है, और अपनी ग़ज़ल पर किसी वास्तविक टिप्पणी को सहर्ष स्वीकारते हैं | ग़ज़लों को पल में लिख देने की उनकी अद्भुत क्षमता है | वह सिर्फ प्रेम या प्रकृति के शायर नहीं हैं | हिंदी ग़ज़ल के जितने विषय हो सकते हैं, रामचरण राग ने पूरी जिम्मेवारी से उस पर अपनी लेखनी अर्पित की है.कुछ समय पहले ही आई उनकी कृति 'उम्मीद का मौसम' उनकी ग़ज़ल की पहली और कुल मिलाकर दूसरी किताब है.श्री राग की किताबों की संख्या भले ही दो हो लेकिन रामचरण राग ने जितना लिखा है, उससे कई मुकम्मल किताबें बन सकती हैं | सबसे बड़ी और परस्पर विरोधी बात यह है कि उनकी हिंदी ग़ज़ल की यह किताब उम्मीद का मौसम का पहला शेर ही ना उम्मीदी से शुरू होता है, और उनकी ग़ज़ल का आखिरी शेर एक शिकायत से खत्म होता है | यह चीज इस बात की अलामत है कि हम आज जिस भटकाव से गुजर रहे हैं, उस रास्ते में ना उम्मीदी ने उम्मीदों को चारों तरफ से घेर लिया है, जहां से निकलने के रास्ते सिर्फ साहित्य से होकर निकलते हैं |

रामचरण राग ग़ज़ल के साथ दोहे भी पाबंदी से लिखते हैं | ग़ज़ल और दोहा दोनों छान्दसिक विधा है, लेकिन नाज, नजाकत, लोच और अंगड़ाई ग़ज़ल में ही अच्छी लगती है | दोहा में अब भी नीति या उपदेश की ही प्रवृत्ति पाई जाती है | रामचरण राग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अपनी ग़ज़लों में मेहनत करते हैं | उनकी शायरी जल्दबाजी में लिखी हुई नहीं दिखती | इसलिए वो हर शेर पर ठहरते हैं, सोचते हैं, तौलते हैं, और तब जाकर उनकी ग़ज़ल मुकम्मल होती है | उनके हर शेर में उनका फिक्र नुमायां होता है | इस संकलन में उनकी एक सौ पांच ग़ज़लें मौजूद हैं, जो अपनी खूबसूरती, संजीदगी, शाइस्तगी तासीर, और अपने रूप विधान में किसी की सानी नहीं रखते | उनकी बहुत सारी ग़ज़लें छोटी बहर की भी हैं | ग़ज़ल की प्रयोगशाला में छोटी बहर की ग़ज़लें लिखना सबसे कठिन काम है | इसलिए ऐसी ग़ज़लों में सिवाय काफिया रदीफ के कुछ नहीं होता, पर राग की यह विशेषता है कि उन्होंने ग़ज़ल की इस बंदिश में भी मुकम्मल शेर कहे हैं | कुछ शेर देखे जा सकते हैं-

सारी नदियां पीकर भी
एक समुंदर प्यासा है

माल लुटाती है सरकार
लूट रहे हैं ठेकेदार


या फिर

मैंने ढूंढा प्यार सखे
हल निकला संसार सखे

रामचरण राग ने अपनी पहली ही ग़ज़ल में सड़क के बहाने पूरी व्यवस्था का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है | यह वह सड़क है, जो कभी दौड़ाती है, तो कभी डराती है | शायर का यह शेर भी उल्लेखनीय है-

हौसला भरकर निकलती है पढ़ाई के लिए
रोज लड़की को डराती है भले सूनी सड़क


तमाम पंथों, भाषाओं धर्मों, और अक़ीदे के बावजूद भी इंसानियत के अपने तकाज़े हैं | यह वह चीज है जो सब चीजों में आला और सब चीजों में अव्वल है | राग का एक खूबसूरत शेर है-

जो बांटे आदमी को दो धड़ों में
उसे तुम मानते हो क्यों बड़ों में


और फिर वह इसका उत्तर भी देते हैं-

सत्ता रंग बदलती है ढंग वही पर जनता का
जन मन के दुख का कारण एक नजर दीदार किया( पृष्ठ 28)


राग उम्मीदों के कवि हैं, इसलिए वह यह बात भी जोर देकर कहते हैं-

चाहे वक्त पड़ा हो भारी
पर मैंने हिम्मत कब हारी

पर उन्हें इस बात का कलक भी है-

सुख अपनी मुट्ठी में होते
हम जो हो जाते दरबारी


भाषा के लिहाज से भी उनकी ग़ज़लें उस जुबान की पैरवी करती हैं, जो हिंदी ग़ज़ल के लिए सबसे उपयुक्त है | वह अंग्रेजी के स्पीकर से लेकर उर्दू की कश्ती और हिंदी के परिशिष्ट शब्दों का भी सुंदर सामंजस्य अपनी हिंदी ग़ज़लों में करते हैं | वास्तव में यही भाषाई एकता हिंदी ग़ज़ल को स्थापित करने में कारगर साबित हुई है | शायर मानकर चलता है कि साहित्य का अलग काम है और सियासत का अलग, इसलिए उन्हें पता है-

दिये रोशनी के जलाने पड़ेंगे
अंधेरे जहां को मिटाने पड़ेंगे

गरचे इस रास्ते में खतरे भी बहुत हैं, तभी तो शायर कहता है-

तुम्हारे साथ कुछ कल क्या गुजारे
हुए दुश्मन जहां वाले हमारे


पर शायर इससे भयभीत नहीं है | उन्हें पता है नदी की धारा अपने रास्ते निकाल ही लेती है-

अपने घाट किनारे हैं
हम नदिया के धारे हैं

लेकिन उन्हें अफसोस इस बात का है, जो वह अगले ही शेर में लिखते हैं-

यह क्या प्यास बुझाएंगे
सारे सागर खारे हैं

अगले ही क्षण उनका हौसला फिर मजबूत हो जाता है-

दीमकों ने कर दिया है खोखला
पेड़ को थामे जड़ों का हौसला


हिंदी ग़ज़ल में रामचरण राग की यह किताब ग़ज़ल की विधा को और मजबूती प्रदान कर सकेगी | क्योंकि बहर कैफ तमाम पत्र-पत्रिकाओं में पाबंदी से लेखन के बावजूद भी एक लेखक की पहचान उनकी कृति से ही होती है | यह किताब लिटिल वर्ल्ड पब्लिकेशंस ने प्रकाशित किया है, जो खासकर हिंदी ग़ज़ल के लिए पूरी पाबंदी और जिम्मेवारी से अपना काम कर रही है |

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
मिर्जा गालिब कॉलेज, गया, बिहार - 823001
9934847941

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post