भीड़ में अपनों की तलाश
अनिरुद्ध सिन्हा का ग़ज़ल संग्रह 'तुम भी नहीं' - डॉ. जियाउर रहमान जाफरी
खुसरो, कबीर, निराला, त्रिलोचन और दुष्यंत की परंपरा से आई हुई गजल अगर आज जिंदा है तो इसका श्रेय हिंदी के जिन ग़ज़लकारों को जाता है, उनमें एक नाम अनिरुद्ध सिन्हा का भी है | अनिरुद्ध सिन्हा खामोशी, ईमानदारी और जिम्मेदारी से ग़ज़ल कहने वाले असल शायर हैं | हिंदी के शायर और आलोचक दोनों में उनका मुकाम सरे फहरिस्त है | उनकी शायरी हर उस आदमी की जुबान की शायरी है जिसने अपना कुछ खोया है, जिसके पास तकलीफें हैं और जिसके दिल में मोहब्बत और चाहत है |
उनकी सधः प्रकाशित ग़ज़ल की किताब 'तुम भी नहीं' भारतीय ज्ञानपीठ से छप कर आई है | भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित किताबों के स्तर और गुणवत्ता के संबंध में कभी किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं पड़ती | अनिरुद्ध सिन्हा अपनी इस किताब में कोई भूमिका नहीं लिखते, न किसी से लिखवाने की जरूरत महसूस करते हैं | उन्हें पता है किसी रचनाकार का अंकन और मूल्यांकन उनकी रचना से होता है न कि आत्म प्रशंसा और प्रशस्ति पत्र से |
इस संकलन का हर एक शेर दिल से निकल कर दिल के अंदर जज्ब कर जाता है | आज हम जिस वक्त में जी रहे हैं वहां तमाम कोशिशें मनुष्य को बांटने की की जा रही हैं उपभोक्तावादी संस्कृति ने आदमीयत और संस्कार को छीन लिया है | मनुष्य अपने किरदार में नहीं अपनी पूंजी और अपनी मलकियत से पहचाना जा रहा है | अनिरुद्ध सिन्हा के हर एक शेर इस दुःख और दर्द का बयान करते हैं,जैसे उनका ये शेर -
दोस्तों के साथ जब बाजार देखा जायेगा
इक नये अंदाज़ से संसार देखा जायेगा
इक चीज़ थी बची हुई वो भी उतार दी
मजबूरियों ने बाप की पगड़ी उतार दी (पृष्ठ -12)
अजब कशमकश में पड़ी ज़िन्दगी है
विवश घर में रहने को हर आदमी है
इस संकलन की तमाम ग़ज़लें ऐसी हैं,जो किसी जल्दबाजी में नहीं लिखी गई है,और न ही इसे सिर्फ क़ाफ़िया और रदीफ़ में फिट कर दिया गया है | असल में ग़ज़ल सिर्फ बनावट और सजावट के लिए नहीं जानी जाती है | उसका समाज पर असर होना लाज़िम है | ग़ज़ल लहजे की शायरी है, और प्रभाव पैदा करना उसका पहला गुण है | यह हुस्न की वह गुफ्तगू है जो अपनी बात पुर असर ढंग से रखती है, और सिर्फ प्रेमालाप नहीं करती, बल्कि सारे जहां के जख्म को अपने जिगर में समेट लेती है | अनिरुद्ध सिन्हा के ग़ज़लें पढ़ते हुए पाठक उनकी गजलों के सम्मोहन से निकल नहीं पाता बल्कि सोचता है, रुकता है, ठहरता है, और अपने दिल के अंदर एक टीस पाता है | कुछ शेर मुलाहिजा हो -
दिल ने सोचा ही नहीं राह की मुश्किल की तरफ
मैं दबे पांव निकलता गया मंजिल की तरफ
नाव कागज की बनी है दूर तक क्या जाएगी
डूब जाएगी किसी दिन साहिलों को है पता
अनिरुद्ध सिन्हा की गजलों की एक बड़ी विशेषता उनका भाषाई संस्कार है | हिंदी ग़ज़ल जिस हिंदुस्तानी भाषा के लिए जानी जाती है अनिरुद्ध सिन्हा के तमाम शेर इसके उदाहरण हैं | वह बड़ी सहजता और सरलता के साथ गंभीर बातें कर लेते हैं | इस किताब के कुछ शेर भी इसकी पुष्टि करते हैं -
लहरों से खेलने का गिनेस शौक था बहुत
दरिया में पैर रखते ही कैसे फिसल गए
तमाम ख्वाब सुनहरे में छोड़ आया हूं
वो मेरे गांव की मिट्टी मुझे बुलाती है
उनकी ग़ज़लें उस दुष्यंती शैली में लिखी गई है जिसे समझने के लिए किसी दिमागी कसरत की जरूरत नहीं पड़ती | शायर की एक सबसे बड़ी खूबी यह भी है कि विरोध के स्वर में भी उनके लहजे तल्ख़ नहीं होते वह अपनी नाराजगी भी मोहब्बत के रास्ते से तय करते हैं |
मेरा क्या आप भी तो बेजुबां थे
जहां कुछ बोलना था चुप वहां थे
उनकी शायरी में प्रेम भी है और प्रकृति भी, प्रेम में वह नफासत है जिसके लिए ग़ज़ल जानी पहचानी और स्वीकारी जाती है | उनकी ग़ज़लों में अज्ञेय की तरह धमनियों में लहू की धार नहीं उतर जाती | उनका प्रेम खालिस प्रेम है | इसलिए शायद बस इतना ही कह पाता है कि
तेरा ख्याल अगर दम ब दम नहीं होता
हमारी फिक्र का मौसम यह नम नहीं होता(पृष्ठ 62)
और फिर शायर की हिदायत भी कि -
बहुत अनमोल हो जाओगे तुम भी
जो अपना फूल जैसा दिल बनाओ
कहना न होगा कि अनिरुद्ध सिंहा तीन दशक से अधिक समय से जिस पाबंदी से ग़ज़लें लिख रहे हैं, आने वाले समय में हिंदी गजल को इस बात का गुमान होगा कि उनके पास इस तरह का शायर भी है | भारतीय ज्ञानपीठ को भी इस बात के दाद दी जानी चाहिए कि उन्होंने उत्कृष्ट छपाई और कम खर्च में अनिरुद्ध सिन्हा जैसे शायर की हिंदी गजल को एक अरसे के बाद ही सही लोगों को पढ़ने का अवसर प्रदान किया |
पुस्तक का नाम- तुम भी नहीं
(ग़ज़ल संकलन)
शायर - अनिरुद्ध सिन्हा
प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली- 3
मूल्य - 210
पृष्ठ 104, वर्ष 2021
उनकी सधः प्रकाशित ग़ज़ल की किताब 'तुम भी नहीं' भारतीय ज्ञानपीठ से छप कर आई है | भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित किताबों के स्तर और गुणवत्ता के संबंध में कभी किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं पड़ती | अनिरुद्ध सिन्हा अपनी इस किताब में कोई भूमिका नहीं लिखते, न किसी से लिखवाने की जरूरत महसूस करते हैं | उन्हें पता है किसी रचनाकार का अंकन और मूल्यांकन उनकी रचना से होता है न कि आत्म प्रशंसा और प्रशस्ति पत्र से |
इस संकलन का हर एक शेर दिल से निकल कर दिल के अंदर जज्ब कर जाता है | आज हम जिस वक्त में जी रहे हैं वहां तमाम कोशिशें मनुष्य को बांटने की की जा रही हैं उपभोक्तावादी संस्कृति ने आदमीयत और संस्कार को छीन लिया है | मनुष्य अपने किरदार में नहीं अपनी पूंजी और अपनी मलकियत से पहचाना जा रहा है | अनिरुद्ध सिन्हा के हर एक शेर इस दुःख और दर्द का बयान करते हैं,जैसे उनका ये शेर -
दोस्तों के साथ जब बाजार देखा जायेगा
इक नये अंदाज़ से संसार देखा जायेगा
इक चीज़ थी बची हुई वो भी उतार दी
मजबूरियों ने बाप की पगड़ी उतार दी (पृष्ठ -12)
अजब कशमकश में पड़ी ज़िन्दगी है
विवश घर में रहने को हर आदमी है
इस संकलन की तमाम ग़ज़लें ऐसी हैं,जो किसी जल्दबाजी में नहीं लिखी गई है,और न ही इसे सिर्फ क़ाफ़िया और रदीफ़ में फिट कर दिया गया है | असल में ग़ज़ल सिर्फ बनावट और सजावट के लिए नहीं जानी जाती है | उसका समाज पर असर होना लाज़िम है | ग़ज़ल लहजे की शायरी है, और प्रभाव पैदा करना उसका पहला गुण है | यह हुस्न की वह गुफ्तगू है जो अपनी बात पुर असर ढंग से रखती है, और सिर्फ प्रेमालाप नहीं करती, बल्कि सारे जहां के जख्म को अपने जिगर में समेट लेती है | अनिरुद्ध सिन्हा के ग़ज़लें पढ़ते हुए पाठक उनकी गजलों के सम्मोहन से निकल नहीं पाता बल्कि सोचता है, रुकता है, ठहरता है, और अपने दिल के अंदर एक टीस पाता है | कुछ शेर मुलाहिजा हो -
दिल ने सोचा ही नहीं राह की मुश्किल की तरफ
मैं दबे पांव निकलता गया मंजिल की तरफ
नाव कागज की बनी है दूर तक क्या जाएगी
डूब जाएगी किसी दिन साहिलों को है पता
अनिरुद्ध सिन्हा की गजलों की एक बड़ी विशेषता उनका भाषाई संस्कार है | हिंदी ग़ज़ल जिस हिंदुस्तानी भाषा के लिए जानी जाती है अनिरुद्ध सिन्हा के तमाम शेर इसके उदाहरण हैं | वह बड़ी सहजता और सरलता के साथ गंभीर बातें कर लेते हैं | इस किताब के कुछ शेर भी इसकी पुष्टि करते हैं -
लहरों से खेलने का गिनेस शौक था बहुत
दरिया में पैर रखते ही कैसे फिसल गए
तमाम ख्वाब सुनहरे में छोड़ आया हूं
वो मेरे गांव की मिट्टी मुझे बुलाती है
उनकी ग़ज़लें उस दुष्यंती शैली में लिखी गई है जिसे समझने के लिए किसी दिमागी कसरत की जरूरत नहीं पड़ती | शायर की एक सबसे बड़ी खूबी यह भी है कि विरोध के स्वर में भी उनके लहजे तल्ख़ नहीं होते वह अपनी नाराजगी भी मोहब्बत के रास्ते से तय करते हैं |
मेरा क्या आप भी तो बेजुबां थे
जहां कुछ बोलना था चुप वहां थे
उनकी शायरी में प्रेम भी है और प्रकृति भी, प्रेम में वह नफासत है जिसके लिए ग़ज़ल जानी पहचानी और स्वीकारी जाती है | उनकी ग़ज़लों में अज्ञेय की तरह धमनियों में लहू की धार नहीं उतर जाती | उनका प्रेम खालिस प्रेम है | इसलिए शायद बस इतना ही कह पाता है कि
तेरा ख्याल अगर दम ब दम नहीं होता
हमारी फिक्र का मौसम यह नम नहीं होता(पृष्ठ 62)
और फिर शायर की हिदायत भी कि -
बहुत अनमोल हो जाओगे तुम भी
जो अपना फूल जैसा दिल बनाओ
कहना न होगा कि अनिरुद्ध सिंहा तीन दशक से अधिक समय से जिस पाबंदी से ग़ज़लें लिख रहे हैं, आने वाले समय में हिंदी गजल को इस बात का गुमान होगा कि उनके पास इस तरह का शायर भी है | भारतीय ज्ञानपीठ को भी इस बात के दाद दी जानी चाहिए कि उन्होंने उत्कृष्ट छपाई और कम खर्च में अनिरुद्ध सिन्हा जैसे शायर की हिंदी गजल को एक अरसे के बाद ही सही लोगों को पढ़ने का अवसर प्रदान किया |
पुस्तक का नाम- तुम भी नहीं
(ग़ज़ल संकलन)
शायर - अनिरुद्ध सिन्हा
प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली- 3
मूल्य - 210
पृष्ठ 104, वर्ष 2021
- डॉ. जियाउर रहमान जाफरी
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार - 823001
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार - 823001