बिहारी बोलियों के अंतर्गत मुख्यतः तीन बोलियों को रखा जाता है, मैथिली, मगही, और भोजपुरी | इसमें मैथिली का छेत्र ज़्यादा बड़ा है | ये बिहार...

बिहारी बोलियों के अंतर्गत मुख्यतः तीन बोलियों को रखा जाता है, मैथिली, मगही, और भोजपुरी | इसमें मैथिली का छेत्र ज़्यादा बड़ा है | ये बिहार के कई ज़िलों दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, बेगूसराय आदि की मातृभाषा है | मुज़फ़्फ़रपुर से नेपाल की सीमा तक इसे पढ़ी बोली और समझी जाती है | भाषा का संबंध न तो किसी धर्म से होता है और न किसी जाति से, बावजूद उसके मैथिली, मिथिला के ब्राह्मणों की भाषा समझी जाती है | मैथिली के एक मात्र मुस्लिम कवि में आचार्य फ़ज़लुर रहमान हाशमी की गणना पूरे सम्मान के साथ की जाती है |
फ़ज़लुर रहमान हाशमी का जन्म 1 जनवरी 1942 ई को बराह पटना में हुआ | जन्म के कुछ सालों के बाद भारत पाक का विभाजन हुआ और उसमें जो दंगे हुए इससे उन्हें बराह छोड़ना पड़ा और पाकिस्तान जाने की तैयारी हुई | उनके पिता के कुल पांच भाई थे चार करांची चले गये | पिता भी जाना चाहते थे पर इस बालक ने कहा अब्बा जान क्या पाकिस्तान और हिंदुस्तान का खुदा अलग-अलग है | अगर एक है तो हम यहीं रहेंगे | वो हमारी यहीं हिफाज़त करेगा | अबोध बच्चे की ये बात पिता को इतनी प्यारी लगी कि वो अकेले यहीं ठहर गये, और बिहार के बेगूसराय को अपना आश्रय स्थल बनाया | ये वही बेगूसराय था जहां दिनकर जैसे कवि हुए थे और जहां चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को साम्राज्य का पाठ पढ़ाया था |
उनके घर की भाषा उर्दू थी लेकिन गांव भवानंदपुर में अपभ्रंश मैथिली बोली जाती थी | आपने उर्दू सीखते हुए मैथिली में दिलचस्पी दिखाई | मैथिली की किताबों का अध्ययन किया और इस भाषा में लिखने लगे | मुस्लिम होने के कारण उन्हें बड़ा सम्मान मिला | हिन्दी और उर्दू में भी उनका लेखन जारी रहा |
मैथिली में उनकी पहली किताब हरवाहक बेटी प्रकाशित हुई | जिसमें माँ सीता के बनवास को मुक्तक काव्य के रूप में लिखा गया था | इस किताब से मैथिली साहित्य में उनकी पहचान बनी | फिर मैथिली की दूसरी कविता संग्रह का प्रकाशन निरमोही के नाम से हुआ | जल्दी ही मैट्रिक, इंटर और बी ए के पाठ्यक्रम में उनकी कविता आ गई, और वो मैथिली के सबसे चर्चित चेहरे बन गये | हिन्दी में भी लिखना जारी रहा | उनकी हिन्दी की पहली कविता की किताब रश्मि-शशि थी, जिसकी भूमिका उस समय के और आज के भी सबसे चर्चित कवि मैथिलीशरण गुप्त और हरिवंश राय बच्चन ने लिखी थी |
उन्होंने साहित्य अकादेमी दिल्ली के कई अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू के किताबों का मैथिली में अनुवाद भी किया, जिसमें मीर तकी मीर, फ़िराक़ गोरखपुरी और अबुल कलाम आज़ाद आदि महत्वपूर्ण है | अबुल कलाम आज़ाद के लिए उन्हें साल 2002 में मैथिली का साहित्य अकादेमी पुरस्कार भी मिला | वो साहित्य अकादेमी दिल्ली के पांच वर्षो तक मैथिली के सलाहकार भी रहे |
श्री हाशमी में हाज़िर जवाबी ग़ज़ब की थी | उनकी आवाज़ में एक आकर्षण था | उनके रहते हुए कवि सम्मेलन का संचालन कोई दूसरा नहीं करता था | रेडियो स्टेशन में उनकी आवाज़ गूंज जाती थी | उनमें देश के प्रति गहरी आस्था थी | उन्हें मुस्लिम ही नहीं हिन्दू भी पूरा सम्मान देते थे | रामकथा पर प्रवचन के लिए उन्हें बुलाया जाता था | उन्होंने जहां मुसलमान के लिए हदीस का परिचय लिखा वहीं भागवत गीता का उर्दू में काव्यात्मक अनुवाद भी किया | वो बहुत बड़े देशभक्त थे | मुल्क के ख़िलाफ़ उन्हें सुनना पसंद न था | ईमानदारी ऐसी थी कि नेपाल से एक घड़ी लाते हुए भी उन्होंने बॉर्डर पुलिस से इजाज़त ले ली थी | रेलवे के कवि सम्मेलन में भी प्लेटफार्म टिकट लेकर प्लेटफार्म पार करते थे | उनके प्रशंशकों में इंदिरा गाँधी भी थीं | अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उन्होंने काम किया था | पद्मश्री के लिए भी उनका नाम आया था लेकिन बिहार सरकार अपनी कोताही से फाइल आगे नहीं बढ़ा सकी |
उनकी हिन्दी ग़ज़ल भी काफी लोकप्रिय है | मेरी नींद तुम्हारे सपने उनकी हिन्दी ग़ज़लों का नायाब संकलन है | जो उनकी मृत्यु के बाद दूसरा मत प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुई | उनकी ग़ज़लों में गहराई भी है और ऊंचाई भी | एक दो शेर देखे जा सकते हैं...
ज़माने को कलंकित कर गया हूं
मिला भाई तो उससे डर गया हूं
न देखा यान में लंगर कहाँ है
मुझे तो हौसला है डर कहाँ है
दुःख का झटका पल पल क्यों है
बंद घड़ा में दलदल क्यों है
हम तुम्हारे करीब आएंगे
अपना दुखड़ा नहीं सुनाएंगे
हिन्दी, और मैथिली के इस प्रखर कवि और लेखक उस वक़्त हार्ट अटैक के शिकार हो गये | जब बरसात की सबसे तेज़ बारिश हो रही थी | 20 जुलाई 2011 की अंधेरी और डरावनी रात में उन्होंने हम सबसे बिदा ले ली | उनकी मृत्यु का जीवंत वर्णन उनकी मैथिली कविता पर शोध कर रहे छात्रों ने मार्मिक ढंग से किया है |
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