ग़ालिब के लतीफे - 1

मिर्ज़ा ग़ालिब के कुछ लतीफे

1. एक रोज़ मिर्ज़ा ग़ालिब के दोस्त हाकिम राजी साहब, जिनको आम पसंद थे, उनके घर आए | दोनों दोस्त बरामदे में बैठ कर बाते करने लगे | इतिफाक से एक गधे वाला अपने गधे लिए सामने से गुजरा | जमीन पर आम के छिलके पड़े थे | गधे ने इनको सुंघा और छोड़ कर आगे बढ गया | हाकिम साहब ने ग़ालिब साहब से कहा, " देखिये आम ऐसी चीज़ है जिसे गधा भी नहीं खाता "

ग़ालिब ने फ़ौरन चुटकी लेते हुए कहा,"बेशक गधा नहीं खाता |"

2. मिर्ज़ा की नियत कभी आमो से भरती न थी | शहर वाले तौह्फो के तौर पर आम भेजते थे | खुद बाज़ार से मंगवाते थे | बाहर से दूर-दूर का आम आता था | मगर हजरत का जी नहीं भरता था | एक सभा में मौलाना फजल हक, ग़ालिब और दुसरे यार दोस्त बैठे थे | हर शख्श आम के बारे में अपनी-अपनी राय बयान कर रहे थे की इसमें क्या-क्या खूबी होनी चाहिए | जब सब लोग अपनी कह चुके थे तो मौलाना फजल हक ने ग़ालिब से कहा की तुम भी अपनी राय बयान करो | ग़ालिब साहब ने कहा भाई मेरे नजदीक तो आम की सिर्फ दो बाते होनी चाहिए, की वह मीठा हो और बहुत हो | सब लोग यह सुनकर हस पढ़े |

3. ग़ालिब साहब एक बार अपना मकाँ बदलना चाहते थे | उन्होंने बहुत से मकाँ देखे जिनमे एक का दिवान खाना ग़ालिब को पसंद आया, मगर महलसरा (रनवास) देखने का मौका मिल न सका | घर आ कर बेगम साहिबा को महलसरा देखने के लिए भेजा | जब वह देख कर आई तो ग़ालिब के पूछने पर बेगम साहिबा ने बताया, " इस मकाँ में लोग बला बताते है |" ग़ालिब यह सुनकर बहुत हसे और कहा, " क्या आप से बढ़ कर भी कोई बला है |"

4. किसी ने मिर्ज़ा साहब से पूछा कि इसकी क्या वजह है कि बिच्छु सर्दी के मौसम में अपने घर से नहीं निकलते | तो आपने फ़रमाया की गर्मी में इस बेचारे की कौन सी इज्जत होती है जो जाड़े में घर से निकले |

तो फिर अब अगली किसी पोस्ट में बाकी के लतीफे तो इन्तजार कीजियेगा |

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